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राजा ने उन कंकड़ों को उठाकर देखा.
राजा ने आश्चर्य में भरकर पूछा- गुरुदेव आपने ये कंकड किसलिए इकठ्ठे करके रखे हैं.
संत मुस्कुराकर बोले- मैंने इसे इसलिए रखा है कि मरने के बाद इन्हें अपने साथ लेकर जाउंगा और ईश्वर को उपहारस्वरूप दूंगा.
राजा उनकी बात सुनकर हंसने लगा. उसने कहा- आप तो संत हैं. संत तो सदा मोह-माया से दूर रहते हैं. आपके जैसा परमज्ञानी भी मरने के बाद कुछ ले जाने की बात सोचता है यह सुनकर मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा है.
महात्मन! क्या आपने यह नहीं सुना कि इंसान संसार में खाली हाथ आता है और खाली हाथ ही जाता है. मरते समय तो उसकी मुठ्ठी खुली रहती है. परलोक जाने वाली आत्मा कंकड तो दूर एक कण भी अपने साथ नहीं लेकर जा सकता.
राजा की बात सुनकर संत बोले- यही तो मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि आप अपनी प्रजा को कष्ट में डालकर जोइतना सारा धन जमा कर रहे हैं, उसे क्या अपने साथ लेकर जाएंगे. आप तो समझदार हैं, आप यह धन अकारण तो जमा नहीं कर रहे होंगे.
आप इतना सारा धन अपने साथ लेकर जाने के लिए ही तो जमा कर रहे होंगे. कृपा कर मुझे भी वह विधि बता दें जिससे मैं भी अपने साथ कुछ कंकड-पत्थर ही सही उपहार स्वरूप ले जा सकूं.
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