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असुरों ने आरंभ किया. हथेली मुड़ सकती नहीं थी इसलिए लड्डु जमीन पर गिरे लगने. जिनके मुख बहुत बड़े थे वे तो लड्डू फिर भी खा लेते थे लेकिन ज्यादातर ने उसे बर्बाद ही किया.

समय समाप्त होने पर देवताओं की बारी आई. उन्होंने दिमाग लगाया. एक देवता चम्मच से लड्डू उठाता और स्वयं खाने की बजाय सामने वाले के मुख में डाल देता. इससे कोहनी मोडने की समस्या खत्म हो गई.

घंटे भर से पहले सारे लड्डू समाप्त हो गए. देवों को विजेता घोषित किया गया. श्रीहरि ने कहा- देवों और असुरों में एक बड़ा फर्क है कि वे अपने बारे में सोचने से पहले दूसरे के बारे में सोचते हैं.

जबकि असुरों का ध्यान सबसे ज्यादा आत्मक्रेंदित होता है. स्वार्थी प्राणियों की बुद्धि छोटी हो जाती है इस कारण उसका बल धरा रह जाता है क्योंकि लोभ उन्हें संगठित होने में बाधा करता है. (सामवेद की कथा)

मित्रों, कलियुग में देवता और असुर दोनों का हमारे शरीर में वास है. जब आपकी बुरी भावनाएं जाग्रत हो रही हों तो समझिए आसुरी शक्तियां प्रभावी हो रही हैं. कुछ अनिष्ट होगा क्योंकि विवेक आपका त्याग करने वाला है.

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश

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