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एक बार महर्षि गालव प्रात: में सूर्य को अर्घ्य दे रहे थे. उसी समय आकाश मार्ग से जाते गंधर्व चित्रसेन ने थूका और थूक गालव की अंजलि में गिर गई.
मुनि क्रोधित होकर शाप देना ही चाहते थे कि उन्हें ध्यान आ गया कि शाप देने से तप का नाश होता है. एक गंघर्व को दंड देने के लिए तप का नाश क्यों करें.
उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से फरियाद की और चित्रसेन को दंड देने को कहा. प्रभु ने प्रतिज्ञा कर ली कि चौबीस घण्टे के भीतर मूर्ख चित्रसेन का वध कर देंगे.
गालव के जाते ही नारद प्रभु दर्शन को पहुंचे. नारद ने कहा, “प्रभो! आपके दर्शन से लोगों के मन के कष्ट दूर हो जाते हैं, पर आज आपके मुख पर चिंता क्यों हैं?
भगवान ने सारी बात और अपनी प्रतिज्ञा सुना दी. नारद को तो ऐसे अवसर की प्रतीक्षा रहती है. वह झटपट चित्रसेन के पास पहुंचे और श्रीकृष्ण की प्रतिज्ञा बता दी.
बेचारा गंधर्व ब्रह्मधाम, शिवपुरी, इंद्र-यम-वरुण सभी से सहायता मांगने पहुंचा लेकिन किसी ने उसे अपने यहां ठहरने तक नहीं दिया. श्रीकृष्ण से शत्रुता कौन मोल ले.
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