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वह बाण लौटकर कर्ण की तरकश में लौट गया और बोला- कर्ण तुम अगली बार जब मुझे साधो तो निशाना बहुत सोच समझकर लगाना. यदि मैं लक्ष्य पर लग गया तो तुम्हारे शत्रु की रक्षा नहीं हो सकती. इस बार पूरा प्रयत्न करो तुम्हारी प्रतिज्ञा पूर्ण होगी.

कर्ण ने यह सुना तो बड़े आश्चर्य में पड़े. उन्होंने बाण से पूछा- आप मुझे अपना परिचय दें. मैंने तो अर्जुन वध का संकल्प लिया है उसके कई कारण हैं पर मैं जानना चाहता हूं कि अर्जुन के वध के लिए आपकी इतनी प्रबल इच्छा क्यों है?

कर्ण की बात सुनकर उस बाण से एक सर्प प्रकट हो गया. दरअसल उस बाण में उस सर्प का वास था. अर्जुन से इतना द्वेष क्यों हैं इसके लिए सर्प ने कर्ण को अपनी कथा सुनाई.

सर्प बने बाण ने कहा- हे वीर मैं कोई साधारण बाण नहीं हूं. मैं महासर्प अश्वसेन हूं. अर्जुन से प्रतिशोध के लिए मैंने बहुत साधना और लंबी प्रतीक्षा की है. इसलिए आज तुम्हारे तुणीर में हूं क्योंकि तुम्हारे अतिरिक्त कोई उसका सामना नहीं कर सकता.

अर्जुन ने एक बार खांडव वन में आग लगा दी थी. उस वन में मेरा पूरा परिवार रहता था. आग इतनी प्रचंड थी कि मेरा पूरा परिवार उसमें झुलस गया. मैं उसकी रक्षा नहीं कर पाया.

इसके प्रतिशोध के लिए मैंने बहुत प्रतीक्षा की है. तुम किसी तरह ऐसा यत्न करो कि अर्जुन के शरीर तक मुझे पहुंचा दो. इसके आगे का शेष कार्य में अपने घातक विष से पूर्ण कर दूंगा.

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