प्रभु शरणं के पोस्ट की सूचना WhatsApp से चाहते हैं तो अपने मोबाइल में हमारा नंबर 9871507036 Prabhu Sharnam के नाम से save कर लें। फिर SEND लिखकर हमें उस नंबर पर whatsapp कर दें।
जल्दी ही आपको हर पोस्ट की सूचना whatsapp से मिलने लगेगी।
कर्ण भले ही अधर्म के पक्ष में खड़े थे लेकिन उनमें भी कुंती और भगवान सूर्य का अंश था. कर्ण ने अधिकांश स्थानों पर नैतिकता का भरपूर परिचय दिया. धमनियों में बहने वाला रक्त दूषित अन्न के प्रभाव में बुद्धि कुछ देर के लिए भले ही फेर दे किंतु उसकी आत्मा सदा के लिए मृत नहीं हो जाती.
आज आपको कर्ण की जो अनसुनी कथा सुनाने जा रहा हूं उसका सार यही है. इस कथा से आपको कर्ण के अंदर की जागृत नैतिकता का पता चलेगा.
भीष्म पितामह ने शर्त रखी थी कि जब तक वह कौरव सेना के प्रधान सेनापति हैं, कर्ण युद्ध के मैदान में नहीं उतरेंगे. भीष्म की इस जिद के आगे विवश महारथी बस अपने पड़ाव में बैठा युद्ध के बारे में सुनता और छटपटाता रहता था.
अर्जुन के प्रहारों से भीष्म शरशय्या पर पड़ गए तो प्रधान सेनापति हुए द्रोणाचार्य. दुर्योधन ने नए सेनापति को भीष्म का निर्णय बदलवाने पर राजी कर लिया. कर्ण भी महाभारत के युद्ध में शामिल हो गए. युद्ध अब चरम पर पहुंच चुका था.
भगवान श्रीकृष्ण यथासंभव यह प्रयास करते कि कर्ण और अर्जुन का सामना न हो. एक दिन कर्ण और अर्जुन कुरुक्षेत्र में सामना हो गया. कर्ण ने अर्जुन पर तेज बाणों से प्रहार शुरू किया. कर्ण का एक बहुत भयंकर आघात आया तो भगवान श्रीकृष्ण ने रथ को नीचे झुका दिया.
बाण अर्जुन के मुकुट के ऊपरी हिस्से को काटकर निकल गया. आश्चर्य कि वह बाण वापस कर्ण की तूणीर में लौट कर आया. बाण बड़ा क्रोधित था और वह कर्ण से तर्क-वितर्क करने लगा.
शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.