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कार्तिकेय इससे पूर्व कि कुछ कह पाते भगवान शिव अन्तर्धान हो गये. शिवजी ने समुद्र को बुलाकर कहा- तुम स्त्रियों के आभूषण स्वरुप माने जाने वाले विलक्षण लक्षणों की रचना करो और कार्तिकेय ने जो पुरुष-लक्षण के विषय में कहा है उसको भी फिर से कहो.
समुद्र ने कहा– प्रभु! आपने जो आज्ञा मुझे दी हैं मैं उसे अपने पूरे सामर्थ्य के साथ पूरा करने का प्रयास करूंगा. महादेव ने कहा कि यह पुरुष-लक्षण का शास्त्र सामुद्रिक शास्त्र के नाम से प्रसिद्ध होगा.
शंकरजी अंतर्धान होने के बाद पुनःप्रकट होकर कार्तिकेय से बोले– कार्तिकेय! इस समय तुमने जो गणेश का दाँत उखाड़ लिया है उसे दे दो. यही उचित है और दुःख न करो.
निश्चय ही जो कुछ यह हुआ है, होना ही था. यह स्त्री पुरुष के लक्षणों का सामुद्रिक शास्त्र समुद्र को ही रचना था. यह गणेश के बिना सम्भव नहीं था. इसलिए दैवयोग से गणेश द्वारा यह विघ्न उपस्थित किया गया, उसका कोई अपराध नहीं है.
यदि तुम उन लक्षणों को प्राप्त करने की इच्छा रखते हो तो समुद्र से ग्रहण कर लो, किंतु स्त्री-पुरुषों का यह श्रेष्ठ लक्षणशास्त्र ‘सामुद्र-शास्त्र’ नाम से ही प्रसिद्ध होगा. अब तुम गणेश को तुम दांतयुक्त कर दो.
कार्तिकेय ने भगवान देवदेवेश्वर से कहा– आपके कहने से मैं दांत तो विनायक के हाथ में दे देता हूं, किंतु इन्हें इस दांत को सदैव धारण करना पड़ेगा. यदि इस दांत को फेंककर ये इधर-उधर घूमेंगे तो यह फेंका गया दांत इन्हें भस्म कर देगा.
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