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श्मशान के बाहर बैठे होने के कारण उन्होंने गधे को बन्धु यानी भाई माना। चारों में से कोई गधे को गले लगा रहा था, कोई पांव धोने लगा। तभी उन्हें एक ऊंट दिखा।
उनके अचरज का ठिकाना न रहा। वे समझ नहीं पा रही थी कि इतनी तेजी से चलने वाला यह जानवर है क्या बला! इस बार तीसरे ने पोथी पलटी।
पोथी में लिखा था, धर्मस्य त्वरिता गतिः। यानी धर्म की गति तेज होती है। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि तेज गति वाला यह जीव धर्म ही है।
पर तभी चौथे को एक रटा हुआ वाक्य याद आया- “इष्टं धर्मेण योजयेत प्रिय”। अपने प्रिय को धर्म से जोड़ना चाहिए।
फिर क्या था। चारों ने अपने प्रिय यानी गधे को धर्म यानि ऊंट के गले से बाँध दिया।
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