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ब्रह्महत्या की अग्नि से पीड़ित भैरव वहां से चले. भैरव ब्रह्माजी के कटे कपाल को धारण कर तीनों लोकों में भागते रहे लेकिन वह जहां भी जाते ब्रह्महत्या उनका पीछा करती पहुंच जाती.
भैरव का मन संताप से भर गया. ब्रह्महत्या के ताप से भैरव काले पड़ गए. उन्होंने महादेव से मुक्ति का मार्ग पूछा.
भगवान शिव ने कहा- भैरव, तुम काशी जाओ. काशी मेरे द्वारा रक्षित है. वहां ब्रह्महत्या नहीं घुस सकती.
जब कालभैरव काशी के समीप पहुंचे तो पीछे-पीछे ब्रह्महत्या भी आई लेकिन वह काशी की सीमा में प्रवेश नहीं कर पाई. काल भैरव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिल गई थी. महादेव ने उन्हें कहा कि तुम काशी का त्याग नहीं करोगे.
कालभैरव तब से ही काशी में वास कर रहे हैं और महादेव के आदेश से इस धाम की रक्षा कर रहे हैं. कालभैरव के मन में ब्रह्महत्या का भय ऐसा समा चुका था कि उन्होंने उसकी निगरानी के लिए आठ चौकियां भी स्थापित कीं जो काशी में विभिन्न नामों से पूजी जाती हैं.
संकलन व संपादनः राजन प्रकाश
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