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पर तुम दोनों भक्त चिंता न करो. वेदशिरा तुम सांप बनोगे तो तुम्हारे सिर पर मेरे दोनों चरणों की छाप बनी रहेगी जिससे तुम्हें गरुड का भय नहीं रहेगा.
अश्वशिरा तुम कौआ बनोगे ज़रूर पर तुम्हें इस अवस्था में भी इतना ज्ञान मिलेगा कि भूत, भविष्य और वर्तमान के ज्ञाता यानी त्रिकालदर्शी कहलाओगे.
भगवान विष्णु यह कहकर चले गए तब अश्वशिरा मुनि योगींद्र काकभुशुण्डि हो गए. वे वहां से उड़कर नील पर्वत पर जाकर रहने लगे. परम विद्वान तथा रामभक्त बने और गरुड़ को रामकथा उन्हीं ने सुनाई.
उधर दक्ष ने अपनी जो कन्यायें महर्षि कश्यप को सौंपी उन्हीं में से एक कद्रू थीं जिनसे हजारों सर्प जन्मे. इन्हीं सापों में वेदशिरा भी कालिय नाग हो कर जन्मे.
कद्रू की सर्प संतानों में सबसे बड़े थे शेष. इन्हीं शेष से भगवान विष्णु ने कहा- एक तुम्हीं हो जो इस धरती को अपने सिर पर उठाए रख सकते हो. तुम्हें लोगों के हित में यह काम ज़रूर करना चाहिए.
शेष ने कहा- भगवन आपके आज्ञा सिर माथे पर पर मैं इसे कब तक उठाए रखूंगा और धरती को तो मैं उठा लूंगा पर अपना पांव कहां धरूंगा.
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