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भगवान विष्णु के मंदिर में जो लोग साफ-सफाई, भजन कीर्तन एवं पूजन करते हैं वे जीवन मुक्त होते हैं. इस प्रकार गुणवती हर साल कार्तिक व्रत और भगवान विष्णु का नित्य पूजन करती रही.
वृद्धा होने के बादएक बार वह ज्वर से पीड़ित और दुर्बल थी फिर भी गंगास्नान को गई. ज्योंहि वह पानी में उतरी ठंढ़ के कारण कांपने लगी. उसी समय गुणवती ने आकाश से आता हुआ एक विमान देखा.
शंख, चक्र, गदा, पद्म आदि आयुधों से युक्त श्रीविष्णु का रूप धारण किए हुए विष्णु के पार्षद आए और गुणवती को अपने साथ विमान में बैकुंठ लोक को लेकर चले गए. कार्तिक व्रत के प्रभाव के कारण गुणवती मेरे पास आ गई.
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