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आपको एक ऐसे गुरुभक्त की कथा सुनाता हूं जिसकी भक्ति से प्रसन्न होकर गुरू ने उसे स्वयं से भी ज्यादा प्रसिद्ध विद्वान होने का आशीर्वाद दिया. इस कथा में एक गूढ़ संदेश भी है. आप पढ़ें, समझें और अपने बच्चों को सिखाएं.

महर्षि आयोद धौम्य की ख्याति ऐसे गुरू के रूप में थी जो अपने शिष्यों की कड़ी परीक्षा लेते और उन्हें तपाकर सोने से कुंदन बना देते थे.

धौम्य के यहां उपमन्यु शिक्षा लेने आए. धौम्य ने भांप लिया कि उपमन्यु साधारण विद्यार्थी नहीं है इसलिए वह उपमन्यु की तरह-तरह से परीक्षा लिया करते थे.

गुरु ने उपमन्यु को गायें चराने का काम सौंपा. उपमन्यु दिनभर गाय चराते और शाम को आश्रम लौटते. एक दिन गुरु ने पूछा कि आजकल तुम खाते क्या हो?

उपमन्यु ने कहा- मैं भिक्षा मांगकर अपना काम चला लेता हूं.

गुरू ने कहा- ब्रह्मचारी को इस प्रकार भिक्षा का अन्न नहीं खाना चाहिए. जो कुछ भी मिले उसे गुरु को समर्पित कर देना चाहिए. फिर गुरू यदि कुछ दे तो ग्रहण करना चाहिए.
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