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वह गुहा अत्यन्त ही अन्धकारमय थी किन्तु हनुमानजी की कृपा से वानर वहां चलने में समर्थ थे.
सभी तीव्र वेग के साथ वे उस गुफा के भीतर पहुँचे एक अंदर प्रकाशमय अत्यंत रमणीक स्थान दिखा. उसका सौंदर्य अलकापुरी के सौंदर्य जैसा था.
चारों ओर अनेक प्रकार से सुंदर वृक्ष और सुगंधित पुष्प थे. सुंदर सरोवर भी था.
सभी वृक्ष सोने जैसे चमक रहे थे जो कौतुहल का विषय था. वृक्षों में मूंगे और रत्नों जैसे फल लदे थे. वहां सोने और चांदी से बने रमणीय महल भी थे.
वानर वीर आश्चर्य में भरे उस स्थान को निहार ही रहे थे कि उनकी दृष्टि वक्कल और काले रंग का मृगचर्म धारण किए एक परम तेजस्विनी साध्वी पर पड़ी.
उनका मुख तपस्या के तेज से चंद्रमा की तरह उज्जवल था.
बुद्धि और बल के पर्याय हनुमानजी उस देवी के पास गए और प्रणाम कर बोले- देवि! आप कौन हैं? यह गुफा, ये भवन तथा ये समस्त धन-धान्य किसके हैं?
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