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माता स्वयंप्रभा का प्रसंग किष्किंधा कांड के लगभग अंतिम प्रकरण में आता है, जब हनुमानजी, राजकुमार अंगद, जाम्बवानजी आदि वीर वानर अपने सहयोगियों के साथ माता सीता की खोज में चले हैं और खोजते-खोजते वह एक विचित्र गुहा (बिल) में घुस जाते हैं.

वानरराज सुग्रीवजी के आदेश पर अंगदजी के नेतृत्व में एक खोजीदल माता सीता की खोज में दक्षिण दिशा की ओर चला. इस दल में जाम्वंतजी के साथ हनुमानजी भी थे.

मास पर्यंत यानी महीने भर में माता की खोज का आदेश था किंतु भटकते-भटकते एक माह का समय पूरा होने को आ गया था और सफलता का कोई संकेत भी न मिला था.

अंगदजी का दल थोड़ा निराश था. दैवयोग से वानरवीरों को ऐसी प्यास लगी कि वे सहन नहीं कर पा रहे थे.

ऐसा प्रतीत हो रहा था कि यदि शीघ्र जल न मिला तो प्राण निकल जाएंगे. उन्हें एक विचित्र गुहा यानी बिल से चहचहाते पक्षी बाहर निकलते दिखे.

पक्षियों के निकलने से स्पष्ट था कि वे इसी गुहा में से जल पीते होंगे. सभी वीर गुहा में प्रवेश कर गए.

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