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सबने बुद्धि लगाई लेकिन कोई राह न सूझी. नहुष किसी धर्मसंकट में हैं यह बात फैली. विद्वान और बडे-बड़े महर्षि नहुष पर बहुत स्नेह रखते थे. उनके कष्ट से आहत होते थे.
महर्षि गोकर्ण को पता चला तो वह नहुष के पास आए. गोकर्ण ने कहा- महाराज च्यवन जैसे महर्षि का मोल सोने-चांदी में क्या लगेगा! उनका स्वभाव गाय जैसा सरल व दयालु है.
नहुष तुरंत समझ गए. उन्होंने कहा- महर्षि च्यवन आपका मोल तो संसार की किसी भी संपत्ति से नहीं लगाया जा सकता. मैं आपके बदले मछुआरे को बस एक गाय दे सकता हूं.
च्यवन नहुष पर बड़े प्रसन्न हुए. वह जाल से बाहर आ गए. मछुआरों को एक लाख सिक्के दे दिए गए.
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