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नारद ने इंद्र को समझाया- वरुण, अग्नि, सूर्य आदि सभी देवता अपनी-अपनी शक्तियों के स्वामी हैं. सबका अपना सामर्थ्य है. आप उनसे मित्रता रखिए. बिना सहयोगियों के राजकार्य नहीं चला करता.’

‘आप शंख मंजीरा बजाने वाले राजकाज क्या जानें? मैं देवराज हूँ, मुझे किसका डर?’ इंद्र ने नारद का मजाक उड़ाया.

नारद ने कहा-‘किसी का डर हो न हो, शनि का भय आपको सताएगा. कुशलता चाहते हों तो शनिदेव से मित्रता रखें. वह यदि कुपित हो जाएं तो सब कुछ तहस−नहस कर डालते हैं.

इंद्र का अभिमान नारद को खटक गया. नारद शनि लोक गए. इंद्र से अपना पूरा वार्तालाप सुना दिया. शनिदेव को भी इंद्र का अहंकार चुभा.

शनि और इंद्र का आमना−सामना हो गया. शनि तो नम्रता से इंद्र से मिले, मगर इंद्र अपने ही अहंकार में चूर रहते थे.

इंद्र को नारद की याद आई तो अहंकार जाग उठा. शनि से बोले- सुना है आप किसी का कुछ भी अहित कर सकते हैं. लेकिन मैं आपसे नहीं डरता. मेरा आप कुछ नहीं बिगाड़ सकते.’

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