इस साल मंगलवार को चतुर्दशी तिथि का श्रवण नक्षत्र के साथ अद्भुत संयोग बन रहा है. उदया तिथि में त्रयोदशी रहेगी जो सुबह करीब 10.30 बजे तक रहेगी. उसके बाद चतुर्दशी आरंभ होगी जो बुधवार को प्रातः 08.15 तक रहेगी. महाशिवरात्रि व्रत का पारण बुधवार को सुबह 08.15 के बाद ही होना चाहिए.

हजारों वर्ष की तपस्या के बाद माता पार्वती ने महादेव को प्रसन्न कर विवाह के लिए राजी किया था. देवी की मनोकामना पूर्ति और देवताओं के तारकासुर के अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए महादेव ने विवाह रचाया था.

महाशिवरात्रि को शिवजी की बारात निकलती है. इस दिन व्रत रखकर चार प्रहर पूजा का विधान है. प्रातःकाल स्नान आदि के बाद भस्म, त्रिपुंड. तिलक, रुद्राक्ष, पुष्प, अक्षत से व्रत का संकल्प लेना चाहिए. शिवमंदिर जाकर महादेव को दूध व जल से रूद्राभिषेक करें. महादेव को इस दिन बिल्वपत्र (बेल के पत्ते) जरूर चढ़ाना चाहिए.

बिल्वपत्र के साथ हल्दी, धतूरा, मदार आदि शिवलिंग पर चढ़ाकर पूजा करें. रूद्राभिषेक कर सकें तो अति उत्तम लेकिन यदि नहीं कर पाते तो भी भोलेभंडारी को व्रत के साथ भक्तिभाव से स्मरण कर प्रसन्न कर सकते हैं. व्रती को रूद्राक्ष की माला से कम से कम 11 माला ऊं नमः शिवाय का जप करना चाहिए

प्रदोष बेला (जब सूर्य अस्त हो गए हों किंतु हल्की चमक बाकी हो) में शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करें या श्रवण करें. शिवरूद्राष्टकम व शिवसहस्त्रनाम का पाठ करते हुए महादेव-पार्वती का ध्यान करके इच्छित वरदान मांगना चाहिए

शाम को स्नान करके धतूरा, मदार, भांग, घी, मिश्री, गूगल, नैवेद्य आदि से प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ प्रहर में पूजा करनी चाहिए. यदि पूजा शिव मंदिर में करें तो
भगवान शिव ने देवी पार्वती को महाशिवरात्रि के व्रत की कथा सुनाई थी. वह कथा इस प्रकार से है. इस कथा को सुनें और परिवार के बड़े-बुजुर्गों को सुनाएं तो पुण्य होता है.

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व्रत कथा इस प्रकार है-

वाराणसी के वन में गुरुद्रुह नामक एक भील रहता था. वह जंगली जानवरों का शिकार करके अपने परिवार का भरण-पोषण करता था. एक बार शिवरात्रि के दिन वह शिकार करने वन में गया. उस दिन उसे दिनभर कोई शिकार नहीं मिला और रात भी हो गई.

तभी उसे वन में एक झील दिखा. उसने सोचा मैं यहीं पेड़ पर चढ़कर शिकार की राह देखता हूं. कोई न कोई प्राणी यहां पानी पीने आएगा. यह सोचकर वह पानी का पात्र भरकर बिल्ववृक्ष (बेल के पेड़) पर चढ़ गया. उस वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित था.

थोड़ी देर बाद वहां एक हिरनी आई. गुरुद्रुह ने जैसे ही हिरनी को मारने के लिए धनुष पर तीर चढ़ाया तो बिल्ववृक्ष के पत्ते और जल शिवलिंग पर गिरे. इस प्रकार रात के प्रथम प्रहर में अंजाने में ही उसके द्वारा शिवलिंग की पूजा हो गई.

तभी हिरनी ने उसे देख लिया. उसने शिकारी से पूछा कि तुम क्या चाहते हो. शिकारी पूरे दिन भूखा-प्यासा व्रत में रह गया था. अंजाने में उससे शिवजी की बेल पत्रों और जल के साथ आराधना हो गई थी इसलिए उसमें पशु-पक्षुओं की बोली समझने की शक्ति आ गई.

शिकारी ने कहा- मैं मनुष्य की बोली में बात करती हिरणी को पहली बार देख रहा हूं. अवश्य ही तुम कोई असाधारण जीव हो. मैं व्याघ्र हूं. मुझे परिवार को पालने के लिए शिकार के अतिरिक्त कोई कार्य नहीं पता. इसलिए मैं तुम्हें मारकर अपना और अपने परिवार का पेट भरूंगा.

हिरणी ने कहा- मैं स्वर्ग की अप्सरा हूं जो शापित होने के कारण हिरणी बन गई हूं. मैं अभी प्रसूता हूं. शीघ्र ही बच्चे को जन्म देने वाली हूं. मुझे मारकर तुम एक साथ दो प्राणियों की हत्या कर दोगे जो उचित नहीं. अपने बच्चे को जन्म देकर मैं तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो जाउंगी.

आज तुम किसी और शिकार से पेट भर लो. अभी यहां पर एक और हिरणी आएगी जो हृष्ट-पुष्ट है तुम उसका शिकार करके आज अपने परिवार का पेट पालो. शिकारी ने कहा- मैं तुम्हारी बात का भरोसा कैसे करूं. इस प्रश्न के उत्तर में हिरणी बनी अप्सरा ने शिकारी को उपदेश देकर संतुष्ट किया तो शिकारी ने उसे जाने दिया.

थोड़ी देर बाद रात्रि के दूसरे प्रहर में उस हिरनी की बहन उसे खोजते हुए झील के पास आ गई. शिकारी ने उसे देखकर पुन: अपने धनुष पर तीर चढ़ाया. हिरणी ने कहा- शिकारी मुझे मत मारो. मैं तो पहले से भी भूखी-प्यासी होने के कारण कमजोर हूं. मेरे शरीर में उतना मांस नहीं जिससे तुम्हारे पूरे परिवार का भोजन हो सके.

फिर भी तुम यदि चाहते हो तो मैं तुम्हारा शिकार बनने के लिए तैयार हूं. मुझे आज की मोहलत दे दो ताकि मैं अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर छोड़कर आ जाउं. हिरणी ने शिकारी को कहा कि यदि वह अपना वचन रखने के लिए लौटकर नहीं आती तो वह उस पाप की भागी हो जो युद्ध को छोड़कर भाग आए किसी महारथी की होती है.

शिकारी ने उसे जाने दिया और निराशा में बेल के पत्ते तोड़कर नीचे फेंकने लगा. उसके साथ जल भी गिराया. इस तरह रात के दूसरे प्रहर में उससे शिव की पूजा हो गई. इसी तरह एक और हिरणी रात्रि के तीसरे प्रहर में जल पीने आई.

शिकारी ने उसे मारने का प्रयत्न किया तो हिरणी ने कहा- यदि तुम मुझे मेरी हत्या का कोई उचित कारण बता सको तो मैं तुम्हारा शिकार बनने के लिए प्रस्तुत हूं. शिकारी ने सारा हाल बताया कि वह और उसके बच्चे सुबह से भूखे हैं. पेट भरने के लिए उन्हें मांस चाहिए.

हिरणी ने कहा- परिवार के पालने के तुम्हारे बात से मैं संतुष्ट हूं और मैं तुम्हारा शिकार बनने को तैयार हूं किंतु जैसे तुम अपने बच्चों के लिए चिंतित हो उसी तरह मुझे भी अपने बच्चों की चिंता है. मुझे रात भर का समय दे दो. मैं बच्चों को उनके पिता के भरोसे करके वापस आ जाऊंगी.

शिकारी दो शिकार गंवा चुका था इसलिए तैयार नहीं हो रहा था. उसने हिरणी के साथ चर्चा शुरू की. वह हिरणी के उत्तर से बड़ा संतुष्ट हुआ. महादेव की कृपा से उसका मन भी निर्मल हो गया था इसलिए उसे तर्कसंगत बातें उचित लगीं.

हिरणी ने वापस लौटने का वचन दिया तो शिकारी ने उसे भी छोड़ दिया. उसने थोड़ा जल पीया और कुछ जल नीचे गिरा दिया. फिर हताशा में बेल के पत्ते तोड़कर फेंकने लगा जो शिवलिंग पर गिरे. इस तरह तीसरे प्रहर में भी अंजाने में उससे शिवलिंग पूजा हो गई.

रात का चौथा प्रहर आरंभ हो चुका था. हिरणी को खोजता वहां एक हिरन आ पहुंचा. शिकारी ने उसे मारने के लिए तीर चढ़ाया और कहा तीन हिरणियों को छोड़ने के बाद आखिरकार देव की प्रेरणा से तुम मिल ही गए हो. तुम्हें मारकर मैं अपने परिवार का पेट भरूंगा.

हिरण ने कहा- हे व्याघ्र वो तीनों मेरी पत्नियां हैं. मेरे भरोसे तुम्हारे पास वापस आने की प्रतीज्ञा कर चुकी हैं. वे अपने वचन की पक्की हैं. तम्हारे पास अवश्य आएंगी. मेरा धर्म है कि मैं उनके वचन की रक्षा करने में सहायक बनूं. तुम मुझे भी समय दे दो ताकि मैं परिवार के लिए उचित प्रबंध कर लूं फिर तुम्हारे पास आ जाउंगा.

अंजाने में ही महादेव की पूजा से उसका मन निर्मल हो गया था. हिरण के वचनबद्धता पर उसके संदेह नहीं रहा. शिकारी ने हिरण को जाने दिया. किंतु यदि इस बार भी वही सब हुआ और चौथे प्रहर में भी शिवलिंग की पूजा हो गई. तीनों हिरनी व हिरन आपस में मिले और अपनी शिकार को की गई प्रतिज्ञा के कारण सुबह शिकारी के पास आ गए.

सबको एक साथ देखकर शिकारी खुश हुआ. उसने कहा- यह बड़े आश्चर्य की बात है कि पशु अपने वचन का इस प्रकार पालन कर रहे हैं. अपने अपना और परिवार का पेट भरने के लिए अनगिनत निरीह जानवरों की हत्या की है किंतु आप जैसे पवित्र जीवों की हत्या करते मेरे हाथ कांपते हैं.

गुरुद्रुह द्वारा दिन भर भूखा-प्यासा रहते चारों प्रहर अंजाने में ही सही लेकिन शिव की पूजा होने से शिवरात्रि का व्रत पूर्ण हो गया. व्रत के प्रभाव से उसके पाप तत्काल भी समाप्त हो गए. आकाश से सभी देवता शिकारी और मृगों के बीच की चर्चा सुनकर प्रसन्न थे.

तभी शिवलिंग से भगवान शंकर प्रकट हुए. महादेव ने उन्हें आशीर्वाद दिया औऱ मोक्ष प्रदान किया. इस प्रकार अंजाने में किए गए शिवरात्रि व्रत से भगवान शंकर ने शिकारी को मोक्ष प्रदान कर दिया. महादेव के दर्शन से हिरण परिवार भी मोक्ष को प्राप्त हुए.

कल पूरे दिन शिव विवाह की पूरी कथा लेकर प्रस्तुत होंगे. आपने वे कथाएं सुन रखी होंगी लेकिन महाशिवरात्रि को उनका श्रवण अवश्य करना चाहिए.

संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली

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