October 8, 2025

अग्नि श्रेष्ठ या जल, ऋषियों का विवाद पहुंचा देवलोक. अंततः गौतमी ने किया निर्णय- ब्रह्म पुराण की रोचक कथा

सांदीपनि ऋषि श्रीकृष्ण बलराम सुदामा आदि शिष्यों को शिक्षा देते हुए

एक बार ऋषियों में यज्ञ के दौरान इस बात पर विवाद हो गया कि अग्नि और जल में से कौन श्रेष्ठ है. बात बढ़ते-बढ़ते यहां तक पहुंच गई कि जब तक इसका निर्णय नहीं हो जाता, यज्ञ की पूर्णाहुति नहीं होगी.

ऋषियों में दो फाड़ हो गया. कुछ अग्नि की श्रेष्ठता बताने लगे दूसरा दल वरुण को श्रेष्ठ साबित करने के लिए तर्क प्रस्तुत कर रहा था.

इंद्र आदि देवता इससे बड़े चिंतित हो गए. देवलोक में भी वरुण और अग्नि की श्रेष्ठता को लेकर विवाद बढ़ने लगा. कुछ अग्नि को श्रेष्ठ बता रहे थे, तो कुछ वरुण को.

अग्नि के पक्ष में ऋषियों ने तर्क दिया- अग्नि जीवन के आधार हैं. पापों के नाशक और देवों के मुख स्थान हैं. यज्ञों में देवों के लिए दी गई आहुति को अग्नि ही देवों तक पहुंचाते हैं.

वरुण को श्रेष्ठ बताने वाले ऋषियों ने जबाव दिया- जल के बिना शुद्धता की कल्पना नहीं हो सकती. यज्ञआदि कार्य करने से पहले स्नान जरूरी है, अन्यथा देवता उसे ग्रहण नहीं करते. तो यदि जल ही न हुआ तो स्नान न होगा और स्नान न हुआ तो यज्ञ का क्या मतलब?

अग्नि समर्थकों ने फिर तर्क दिया- जीवन को अग्नि ही आधार देते हैं क्योंकि मनुष्यों का भरण-पोषण करने वाले देवों का पोषण अग्नि के माध्यम से होता है. अग्नि मनुष्यों में शुक्र के रूप में स्थित होते हैं जो स्त्री के साथ संयोग से संतान का रूप लेता है.

वरुण का पक्ष लेने वालों ने इसके उत्तर में कहा- मनुष्यों को जीने के लिए भोजन अवश्य चाहिए. जल के बिना पेड़-पौधे और अन्न हो नहीं सकते. इसलिए अगर मनुष्य जीवित ही नहीं रहा तो वह संतान उत्पन्न कैसे करेगा? अमृत का आधार तत्व भी जल है न कि अग्नि.

विवाद बढ़ता गया. कोई पक्ष झुकने को तैयार न था. सभी इंद्र के पास निर्णय के लिए गए. इंद्र को लगा एक को श्रेष्ठ बताने का अर्थ है दूसरे से बैर. उन्होंने जान छुड़ाने के लिए कहा- सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के अलावा इसका निर्णय दूसरा कोई नहीं कर सकता.

सभी ब्रह्मा के पास पहुंचे. ब्रह्मदेव भी उलझन में पड़ गए. उन्होंने बीच का रास्ता निकाला- अग्नि और जल दोनों समान रूप से श्रेष्ठ हैं. मेरे द्वारा रची गई सृष्टि में से एक का भी अगर लोप हो जाए तो वह समाप्त हो जाएगी. मैं दोनों को बराबर सम्मान का अधिकारी मानता हूं.

ऋषियों को समझ में आ गया कि ब्रह्मदेव चतुराई से मामले को गोल कर गए. ब्रह्मलोक से लौटते हुए उन्हें वायुदेव नजर आ गए. उनसे भी वही प्रश्न किया गया- वायु ने अग्नि को श्रेष्ठ बताते हुए कहा कि वह आधार तत्व हैं इसलिए श्रेष्ठ हैं.

दूसरे पक्ष को यह उत्तर स्वीकार नहीं था. वे पृथ्वी के पास गए और निर्णय करने को कहा- पृथ्वी ने जल को श्रेष्ठ बताया. पृथ्वी का तर्क था- सबकुछ जल से पैदा होता है, अग्नि से तो वह स्वाहा हो जाता है. इसलिए जल प्रथम वंदनीय हैं.

विवाद को फिर हवा मिल गई. सबने मिलकर तय किया कि विष्णुलोक चलें. श्रीहरि जो निर्णय देंगे वही सबको स्वीकार होगा. सब क्षीर सागर पहुंचे. भगवान विष्णु ऋषियों के मन में आए ऐसे हीन विचार से क्षुब्ध थे. ऋषियों ने तरह-तरह से उनकी स्तुति की लेकिन उन्होंने दर्शन नहीं दिया.

श्रीहरि ने आकाशवाणी की- ऋषियों आपका दायित्व है मनुष्यों को राह दिखाना. आप ऐसे विवादों को जन्म न दें. दोनों देव समान रूप से पूजनीय हैं. इनमें भेद करना उचित नहीं. ऋषियों को इस उत्तर की आशा नहीं थी.

वे एक लोक से दूसरे लोक का चक्कर काटते अब थक चुके थे लेकिन निर्णय नहीं हो पाया. हारकर गौतमी नदी के पास पहुंचे. उनसे निर्णय करने का अनुरोध किया.

गौतमी ने कहा- देव इसलिए देव हैं और पूजनीय हैं क्योंकि वे मनुष्यों की तरह श्रेषठता के तुच्छ विवाद में नहीं पड़ते. अग्नि और जल एक दूसरे के पूरक हैं. अग्नि की उत्पत्ति भी जल से हुई है.

बिना जल से स्नान कराए स्वयं अग्नि भी प्रकट नहीं होते. अग्नि प्रकट नहीं हों तो यज्ञा आदि होंगे नहीं. यदि यज्ञ नहीं हुए तो सभी देवों के साथ स्वयं वरुण की शक्ति भी कम होगी.

वरुण की पूजा से यज्ञ आरंभ होगा किंतु अग्नि से उसे सार्थकता मिलेगी. वरुण अग्नि का आभार भी प्रकट करेंगे. इसलिए यज्ञ या हवन के बाद अंत में जल का छिड़काव किया जाता है. (ब्रह्मपुराण की कथा)

संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली

प्रभुभक्तों हम हिंदुत्व के सार को दुनियाभर में फैलाने के लिए प्रतिदिन भक्तिमय कथाएं ढूंढकर लाते हैं, पोस्ट करते हैं. प्रभुचर्चा को विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाने की मुहिम में आपका योगदान भी होना चाहिए. अनुरोध है कि प्रभुनाम प्रचार के लिए इन कथाओं को अपने मित्रों के साथ Whatsapp पर लगातार शेयर करें. शेयर के लिए नीचे दिया बटन दबाएं. ।।जय श्रीराम।।

Share: