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(कार्तिक महात्म्य प्रथम अध्याय)

नैमिषारण्य तीर्थ में श्रीसूतजी महाराज शौनक आदि अठ्ठासी हजार ऋषियों से बोले- अब मैं आपसे कार्तिक मास के माहात्म्य की श्रेष्ठ कथा कहता हूं जिसे सुनकर मनुष्य हर प्रकार के दुखों से छूटकर बैकुंठ को प्राप्त कर लेता है.

सूतजी ने कहा- श्रीकृष्णजी से आज्ञा लेकर नारदजी के चले जाने पर सत्यभामा प्रसन्न होकर बोलीं कि हे नाथ! मेरा जीवन सफल हो गया. मेरे माता-पिता भी धन्य हो गए हैं जो आपकी समस्त रानियों में मैं प्रिय हुई.

मैंने वह कल्पवृक्ष आदि आपके साथ नारदजी को विधिपूर्वक दान में दे दिया था वही कल्पवृक्ष मेरे घर में सदा लहराया करता है. हे स्वामी आप मुझे वह विधि बतलाइए जिसके करने से में मैं इस कल्प के बाद भी आप मुझसे विमुख न हों, मुझे प्रेम करते रहें.
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