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रावण द्वारा सीता हरण कर लेने के बाद प्रभु श्रीराम वन में सीता को तलाश रहे थे. शिवजी प्रभु की इस दशा से अत्यंत दुखी थे. वह प्रभु के दर्शन करना चाहते थे लेकिन श्रीराम अवतार को सबके सामने प्रकट करने का समय नहीं आया था.

इस कारण महादेव चाहकर भी उनके दर्शन को जाते नहीं थे क्योंकि शिवजी के वन में जाकर प्रभु से मिलते ही सारा रहस्य खुल जाता.

महादेव से रहा नहीं गया. साधु वेश धरा और प्रभु से मिलने चल दिए. सती भी साथ हो लीं. उन्होंने सती को कुछ बताया नहीं था. एक स्थान पर श्रीराम और लक्ष्मण दिखे. प्रभु को पीड़ित देख शिवजी सामने नहीं गए. उन्होंने बस जय सच्चिदानंद कहकर प्रणाम किया.

सती आश्चर्य में थीं. स्वयं भगवान शिव एक राजकुमार को क्यों प्रणाम कर रहे हैं? उनके मन में तरह-तरह की शंका हुई.

शिवजी ने ताड़ लिया. उन्होंने सती को बताया कि वह राजकुमार स्वयं श्रीविष्णु अवतार हैं. सती को लगा शिवजी कौतूहल कर रहे हैं. भला प्रभु को पत्नी वियोग में वन-वन भटकने की नौबत क्यों आने लगी !
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