दैत्यराज दंभ ने श्रीहरि को प्रसन्नकर उनके समान बलवान पुत्र शंखचूड़ प्राप्त किया. आरंभ में शंखचूड़ धर्मवान था. उसने पुष्कर में तप से ब्रह्माजी को प्रसन्न किया व देवताओं से अजेय होने का वर मांगा. ब्रह्माजी ने मनचाहे वर के साथ नारायण कवच भी प्रदान किया.
शंखचूड का विवाह साध्वी तुलसी से हुआ. श्रीहरि के आशीर्वाद से जन्मे व ब्रह्मा से वरदान प्राप्त शंखचूड ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया. त्रस्त देवता श्रीहरि की शरण में गए. प्रभु बोले- शंखचूड़ मेरे वरदान से जन्मा है. उसका अंत केवल महादेव ही कर सकते हैं. देवों ने महादेव को कष्ट और श्रीहरि का आदेश बताया तो शिवजी उसके अंत को तैयार हो गए. शिवजी और शंखचूड़ के बीच युद्ध शुरू हुआ.
नारायण कवच के अलावा पत्नी तुलसी ने पतिव्रत के प्रभाव से शंखचूड़ को अभेद्य कवच से युक्त कर दिया. महादेव हजारों वर्षों के युद्ध के बाद भी उसका वध नहीं कर पा रहे थे. देवों ने श्रीहरि से शंखचूड़ वध की राह निकालने को कहा. श्रीहरि ब्राह्मण रूप धरकर गए और शंखचूड से नारायण कवच दान में मांग लिया.
तुलसी का पतिव्रत कवच भेदना था. श्रीहरि ने शंखचूड़ का ही रूप धरा और तुलसी के पास पहुंचे. वर्षों बाद पति को देख प्रसन्न तुलसी ने पत्नी समान प्रेम किया. इससे तुलसी का पतिव्रत व कवच दोनों खंडित हो गए तो महादेव ने त्रिशूल प्रहार से शंखचूड़ का वध कर दिया. प्रहार से नारायण के समान बलशाली शंखचूड की अस्थियां चूर हुईं तो शंख का जन्म हुआ.
शंखचूड़ विष्णु भक्त था इसलिए श्रीहरि को शंख से जल चढ़ाने का विधान है पर महादेव ने उसका वध किया था अतः शंख से शिवजी को जल नहीं चढ़ाया जाता.
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