धर्मपुर नगरी में धर्मशील नामक राजा राज करता था. उसके अन्धक नाम का दीवान था. एक दिन दीवान ने कहा- महाराज, एक मन्दिर बनवाकर उसमें देवी की स्थापना करके पूजा की जाए तो बड़ा पुण्य मिलेगा.
राजा ने दीवान के कहे अनुसार ही किया. दीवान के बात सच निकली. नियमित पूजा होने लगी तो राज्य पर देवी की कृपा बरसने लगी. खुशहाली में वृद्धि होने लगी.
एक दिन देवी ने प्रसन्न होकर राजा से वर मांगने को कहा. राजा के कोई सन्तान नहीं थी. उसने देवी से पुत्र मांगा. देवी बोली- अच्छी बात है, तुझे बड़ा प्रतापी पुत्र प्राप्त होगा.
कुछ दिन बाद ही रानी गर्भवती हुईं. समय आने पर राजा के एक लड़का हुआ. राज को देवी का कथन याद था. राजा ने सारे नगर में सजावट करायी, बाजे बजवाये, उपहार बंटवाये, बड़ी खुशी मनायी गयी.
पड़ोस के राज्य से एक धोबी इस राज्य में अपने एक प्रिय मित्र से मिलने आया था. राज उत्सव की खबर सुनी तो वह भी चला. उसकी निगाह देवी के मन्दिर पर पड़ी तो देवी को प्रणाम करने बढ़ा. तभी उसे एक धोबी की लड़की दिखाई दी, जो बड़ी सुन्दर थी.
सुंदर लड़की को देखकर वह इतना पागल हो गया कि उसने मन्दिर में जाकर देवी से प्रार्थना की- हे देवी! यह लड़की यदि मुझे मिल जाय. अगर आपकी कृपा से यह मुझे मिल गयी तो मैं अपना सिर आपको चढ़ा दूंगा.
इस घटना के बाद वह हर घड़ी बेचैन रहने लगा. उसके अवस्था देख मित्रों ने उससे इसका कारण पूछ तो उसने अपने एक घनिष्ठ मित्र को दिल की बात कह दी. उसके मित्र ने उसके पिता से सारा हाल कहा.
बेटे के मित्र से सारी बात जानकर और फिर अपने बेटे की यह हालत देखकर धोबी का पिता लड़की के पिता के पास गया और उसके अनुरोध करने पर आंतत: कुछ दिनों में ही दोनों का विवाह हो गया.
विवाह के कुछ दिन बाद लड़की के पिता के यहां एक उत्सव हुआ. इसमें शामिल होने के लिए न्यौता आया. मित्र को साथ लेकर दोनों चले. रास्ते में उसी देवी का मन्दिर पड़ा तो लड़के को अपना वादा याद आ गया.
उसने मित्र और स्त्री को थोड़ी देर रुकने को कहा और स्वयं जाकर देवी को प्रणामकर के अपनी गर्दन पर तलाव का ऐसा ज़ोरदार प्रहार किया कि शीश एक झटके में कट कर लुढक गया.
बहुत देर हुई मित्र नहीं आया तो देर हो जाने पर जब उसका मित्र उसकी पत्नी को बाहर ही छोड़ मंदिर के अन्दर गया तो देखता क्या है कि उसके मित्र का सिर धड़ से अलग पड़ा है. वह जड़्वत रह गया.
थोड़ी देर बाद सचेत हुआ तो उसके दिमाग में एक बात आयी. उसने सोचा कि यह दुनिया बड़ी बुरी है. कोई यह तो समझेगा नहीं कि इसने अपने आप शीश चढ़ाया है. सब यही कहेंगे कि इसकी सुन्दर स्त्री को हड़पने के लिए मैंने गर्दन काट दी.
ऐसे कलंक से तो मर जाना कहीं अच्छा है. यह सोचकर उसने भी तलवार उठाई और अपनी गर्दन उड़ा दी. उधर बाहर खड़ी-खड़ी स्त्री हैरान हो गयी तो वह मन्दिर के भीतर गयी.
उसके आश्चर्य की सीमा न रही दोनो के कटे सिर देख कर वह चकित रह गयी. उसने सोचा कि ऐसा कौन होगा जिसने इन दोनों को मारा होगा. फिर सोचने लगी कहीं लोग यह न कहें कि एक बुरी स्त्री के पीछे दोनों लड़ मरे.
फिर यह भी तो हो सकता है कि लोग यह समझें कि यह औरत ही बुरी होगी. इसके प्रपंच के कारण ही जरूर कुछ न कुछ ऊंच-नीच हुआ होगा. फिर इसने अपना पाप छिपने के लिए दोनों को मार डाला. इस बदनामी से तो मर जाना ही अच्छा है.
यह सोच उसने तलवार उठाई और अपनी पूरी शक्ति के साथ जैसे ही गर्दन पर मारना चाही कि देवी ने प्रकट होकर उसका हाथ पकड़ लिया और कहा- बेटी मैं तुझ पर प्रसन्न हूँ. जो चाहो, सो माँग लो.
स्त्री ने मांगा- हे देवी! यदि आप सचमुच मुझ पर प्रसन्न हैं तो इन दोनों को जीवित कर दें. देवी ने कहा- ठीक है. तुम दोनों के सिर उनके धड़ों से मिलाकर रख दो. फिर मैं प्राण फूंक दूंगी.
घबराहट में स्त्री सिर जोड़ने लगी और उससे एक बड़ी भूल हो गई. गलती से एक का सिर दूसरे के धड़ पर लग गया. उसके पति का सिर और पति के दोस्त का धड़ और पति का धड़ और दोस्त के सिर से. देवी ने दोनों को जीवन दे दिया.
अब तो पहले से भी ज्यादा विषम स्थिति पैदा हो गयी. वे दोनों जिगरी दोस्त आपस में ही झगड़ने लगे. एक कहता कि यह स्त्री मेरी है. दूसरा कहता मेरी. दोनों एक दूसरे के साथ मरने-मारने पर उतारू हो गए.
यह कथा सुनाकर बेताल बने शिवकिंकर ने राजा विक्रमादित्य से कहा- हे राजन्! अब बताओ कि यह स्त्री किसकी होनी चाहिए? उसका वास्तविक स्वामी कौन हो?
राजा ने कहा- हे शिवजी के सेवक प्रतिनिधि बेताल! नदियों में गंगा उत्तम है, पर्वतों में सुमेरु, वृक्षों में कल्पवृक्ष और अंगों में सिर. सिर के बिना शरीर शव है इसलिए जिस शरीर पर पति का सिर लगा हो, वही पति होना चाहिए.
(भविष्य पुराण से)
संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश