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यक्ष- सच्चा प्रेम क्या है?
युधिष्ठिर- स्वयं को सभी में देखना सच्चा प्रेम है. स्वयं को सर्वव्याप्त देखना सच्चा प्रेम है. स्वयं को सभी के साथ एक देखना सच्चा प्रेम है.
यक्ष- तो फिर मनुष्य सभी से प्रेम क्यों नहीं करता?
युधिष्ठिर- जो स्वयं को सभी में नहीं देख सकता वह सभी से प्रेम नहीं कर सकता.
यक्ष- आसक्ति क्या है?
युधिष्ठिर- प्रेम में मांग, अपेक्षा, अधिकार आसक्ति है.
यक्ष- बुद्धिमान कौन है?
युधिष्ठिर- जिसके पास विवेक है वह बुद्धिमान है.
यक्ष- नशा क्या है?
युधिष्ठिर- आसक्ति ही नशा है.
यक्ष- चोर कौन है?
युधिष्ठिर- इन्द्रियों के वे आकर्षण, जो इन्द्रियों को हर लेते हैं वही चोर हैं.
यक्ष- जागते हुए भी कौन सोया हुआ है?
युधिष्ठिर- जो आत्मा को नहीं जानता वह जागते हुए भी सोया है.
यक्ष- कमल के पत्ते में पड़े जल की तरह अस्थायी क्या है?
युधिष्ठिर- यौवन, धन और जीवन अस्थाई हैं. इनका कभी भी पतन हो सकता है.
यक्ष- नरक क्या है?
युधिष्ठिर- इन्द्रियों की दासता नरक है.
यक्ष- मुक्ति क्या है?
युधिष्ठिर- अनासक्ति ही मुक्ति है.
यक्ष- दुर्भाग्य का कारण क्या है?
युधिष्ठिर- मद और अहंकार दुर्भाग्य के सबसे बड़े कारण हैं.
यक्ष- सौभाग्य का कारण क्या है?
युधिष्ठिर- सत्संग और सबके प्रति मैत्री भाव से सौभाग्य होता है.
यक्ष- सारे दुःखों का नाश कौन कर सकता है?
युधिष्ठिर- जिसके मन में कोई लालसा न हो और जो सबकुछ छोड़ने को तैयार हो, वही दुखों का नाश कर सकता है.
यक्ष- मरते समय तक यातना कौन देता है?
युधिष्ठिर- गुप्त रूप से किया गया अपराध मरते समय तक मन को अस्थिर रखकर यातना देता है.
यक्ष- दिन-रात किस बात का विचार करना चाहिए?
युधिष्ठिर- सांसारिक सुखों की क्षण-भंगुरता का.
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