जीवितपुत्रिका व्रत जीतिया शिव-पार्वती पूजा
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यह कथा हम आपको एक बार पहले भी बता चुके हैं. आज माधी संकष्टि चतुर्थी है. आज इस कथा को सुनने का विशेष महत्व है इसलिए फिर से सुना रहे हैं.

आज गणपति की पूजा बिना तिल के नहीं होती. आशा है आपने तिल के लड्डू बना लिए होंगे. पूजा के लिए लाल वस्त्र, लाल फूल-फल आदि रख लिए होंगे.

आम तौर पर पूजा संध्या में आरंभ होती है. पूजा के बाद चंद्रमा को अर्ध्य दिया जाता है.  इसलिए अपने स्थान पर चंद्रोदय का समय जान लें.

हम संध्या से पूर्व पूजा के मुहूर्त, कथा और विधि सब देंगे. यदि आपके पास कोई विद्वान पुजारी हैं, तो अति उत्तम, नहीं हैं तो भी कोई बात नहीं.

यह पूजा स्वयं भी की जा सकती है. विधि हम बता देंगे. आप बस तिल, वस्त्र, लाल फूल तैयार रखें.

संकष्ठि से जुड़ी एक कथा कल दी थी. आज एक और एक प्रचलित कथाः

एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती नर्मदा नदी के तट पर बैठे थे. देवी पार्वती ने समय व्यतीत करने के लिए भोलेनाथ से चौपड़ खेलने को कहा.

महादेव तैयार तो हो गए. परन्तु वहां कोई और था नहीं. इसलिए समस्या यह थी कि इस खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा?

भोलेनाथ ने कुछ तिनके उठाए. उसका पुतला बनाया और उस पुतले में प्राण प्रतिष्ठा कर दी. पुतला एक बालक के रूप में जीवित हो गया.

महादेव ने पुतले से कहा- पुत्र हम चौपड़ खेलना चाहते है. परन्तु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है. इसलिए तुम्हें हम निर्णायक बनाते हैं. तुम फैसला करना कि चौपड़ में कौन हारा और कौन जीता?

चौपड का खेल तीन बार खेला गया. संयोग से तीनों बार पार्वतीजी जीत गईं. खेल समाप्त होने पर बालक से देवी ने उसका निर्णय पूछा. उसने महादेव को विजयी घोषित कर दिया.

पार्वती क्रोधित हो गईं. उन्होंने कहा- तुममें निर्णायक बनने की क्षमता नहीं है. हार-जीत प्रत्यक्ष देखते हुए भी तुमने कुटिलता से गलत निर्णय सुनाया. इसलिए तुम लंगड़े होकर कीचड में पड़े रहो.

बालक ने माता के पैर पकड़ लिए. उसने कहा- आप मेरी माता समान हैं. मैंने किसी द्वेष में ऐसा नहीं किया बल्कि अज्ञानतावश ऐसा निर्णय हुआ. क्षमा कर दें.

पार्वती पसीज गईं. उन्होंने कहा- यहां गणेश पूजन के लिए नाग कन्याएं आएंगी. उनसे पूजा की विधि समझकर तुम गणेश व्रत करो. ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे.

यह कहकर शिव-पार्वती कैलाश चले गए. सालभर बाद नाग कन्याएं गणेश पूजन के लिए आईं. उनसे पूजन विधि ठीक से समझकर बालक ने श्री गणेश का 21 दिन लगातार व्रत किया.

गणेशजी प्रसन्न हो गए. उन्होंने बालक को वरदान मांगने को कहा. बालक ने कहा- हे विनायक मुझमें इतनी शक्ति दीजिए  कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वो यह देख प्रसन्न हों.

श्रीगणेश से वरदान प्राप्त कर वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंच गया. अपने कैलाश पर्वत पर पहुंचने की कथा उसने भगवान महादेव को सुनाई. किसी बात पर पार्वतीजी, भोलेनाथ से रुष्ट हो गईं.

बातचीत तक बंद हो गई. कैलाश पर रह रहे उस बालक को भी बात पता चली. उसने शिवजी से कहा- जैसे माता ने कहा था कि गणेश पूजा करके तुम मेरा स्नेह प्राप्त करोगे. नाराज देवी को मनाने के लिए आप भी वही पूजन करिए.

भक्त की बात पर भोलेनाथ मुस्कुराए. वह देवी को प्रसन्न करने के लिए बालक के मन में बसे गणेश आराधना के भाव को बनाए रखना चाहते थे. इसलिए उन्होंने बालक से गणेश पूजा की विधि समझी और व्रत किया.

पुत्र के प्रति इस स्नेह के भाव से पार्वती खुश हो गईं. माता के मन से भगवान भोलेनाथ के लिये जो नाराजगी थी वह समाप्त हो गई.

गणेश को प्रथम पूजनीय बनाने से नाराज शिवपुत्र कार्तिकेय दक्षिण में निवास कर रहे थे. देवी को पुत्र से मिलने की बड़ी इच्छा हुई. वह पुत्र से मिलने को बेचैन हो गईं.

शिवजी ने युक्ति लगाई. उन्होंने पार्वती से कहा- पुत्र को प्राप्त करने के लिए तुम भी गणेश पूजन करो. एक पुत्र से मिलन को व्याकुल माता ने दूसरे पुत्र की आराधना करनी शुरू कर दी.

कार्तिकेय को खबर लगी. वह भागे-भागे कैलाश आए. माता की पुत्र से भेंट की मनोकामना पूरी हुई. उस दिन से श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत मनोकामना पूरे करने वाला व्रत माना जाता है.

लेखन व संपादनः राजन प्रकाश

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।।ऊं गं गणपतये नमः।।

संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली

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