प्राचीन काल में स्थूलकेश नामक एक ऋषि वन में आश्रम बनाकर रहते थे. अप्सरा मेनका के गर्भ से गंधर्वराज विश्वावसु ने एक संतान उत्पन्न किया. मेनका ने नवजात कन्या को स्थूलकेश ऋषि के आश्रम के पास छोड़ दिया.

ऋषि स्थूलकेश कन्या अपने आश्रम ले आए. अप्सरा और गंधर्व का अंश होने के कारण वह कन्या अप्रतिम सुन्दरी थी. ऋषि ने उसका नाम रखा प्रमद्वरा.

भृगुवंशी ऋषि कुमार रुरु एक दिन स्थूलकेश के आश्रम पर घूमते-धूमते आया और प्रमद्वरा के रूप पर मोहित हो गया. रुरु के पिता प्रमति स्थूलकेश से मिले और रुरु और प्रमद्वरा का विवाह तय किया गया.

एक दिन प्रमद्वरा सखियों के साथ वन में गई और उसका एक सर्प पर पैर पड़ गया. क्रोधित सर्प ने उसे डंस लिया और उसकी मृत्यु हो गई. इससे रुरु बहुत शोक में डूब गया.

रुरु विलाप कर रहा था तभी वहां एक देवदूत पहुंचा और उसने कहा कि प्रमद्वरा को जिनती आय़ु मिली थी वह उस आयु को जी चुकी है. लेकिन रुरु यह सुनने को तैयार न था.

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देवदूत ने कहा कि यदि रुरु अपनी आधी आयु दे दो तो यह पुन: जीवित हो जाएगी. रुरु सहर्ष अपनी आधी आयु प्रमद्वरा को देने को तैयार हुआ तो विश्वावसु और मेनका धर्मराज के पास गए और अपनी पुत्री को जीवित कराया.

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