हनुमान जी सामान्य मानव नहीं थे अपितु रुद्रांश थे.  वैसे इसे हनुमान प्राकट्योत्सव या जन्मोत्सव ही कहा जाना चाहिए. पर बोलचाल की भाषा में हनुमान जयंती ही प्रचलित है.

भक्त तो भगवान को चाहे जैसे पुकार ले, बस भाव पूरा होना चाहिए. इसलिए हनुमान जी का प्राकट्योत्सव कहें या हनुमान जयंती जो भी कहें पूरी श्रद्धा से कहें. शब्दों के विवाद में फंसने की आवश्यकता नहीं.  इस पोस्ट में आपको हनुमान जी की पूजा आराधना से जुड़ी काम की बातें मिलेंगी जिसे आप संजो कर रखना चाहेंगे. आप किसी भी देवी-देवता, पर्व-त्योहार की पूजा-अर्चना सेजुड़ी जानकारी चाहते हैं तो प्लेस्टोर से PRABHU SHARNAM ऐप डाउनलोड कर लें.

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शास्त्रों के अनुसार हनुमान जन्मोत्सव या हनुमान जयंती हर वर्ष दो बार मनाई जाती है. चैत्र मास की शुक्ल पूर्णिमा और कार्तिक कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को. बाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमानजी का अवतरण कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्दशी को हुआ था.

वहीं पुराणों के अनुसार शिवजी ने पवनदेव की सहायता से अपना तेज माता अंजना के गर्भ में स्थापित कराया. पवनदेव ने माता अंजना के कान के रास्ते अपना अंशतेज उनके गर्भ में स्थापित कर दिया. कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी दिन मंगलवार की महानिशा यानी अर्धरात्रि में अंजनाजी के गर्भ से हनुमानजी प्रकट हुए.

कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी को हनुमान जयंती मनाने के पीछे एक और संदर्भ दिया जाता है. लंका विजय के बाद भगवान वानरी सेना के साथ अयोध्या पधारे. सभी को विदा करते समय श्रीराम-जानकीजी ने भांति-भांति के उपहार प्रदान किए.

कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी को सीता मैया ने हनुमानजी के गले में सबसे पहले अपने गले से उतारकर बहुमूल्य मोतियों और रत्नों से सजी एक दिव्य माला पहना दी.

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हनुमानजी माला की एक-एक मोतियों को तोड़कर उसमें से भगवान श्रीराम की छवि खोजने लगे परंतु उनमें श्रीराम के दर्शन न हुए. सीताजी यह सब देखकर अचंभित थीं.

अंत में उन्होंने अपनी मांग में भरे सिंदूर से एक चुटकी सिंदूर निकालकर हनुमानजी को तिलक करते हुए कहा-पुत्र मेरे लिए इससे बढ़कर कोई मूल्यवान वस्तु नहीं है. तुम इसे हर्ष के साथ साथ धारण करो और सदैव अजर-अमर रहो.

यही कारण है कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हनुमानजी का जन्म महोत्सव मनाया जाता है. तेल में सिंदूर मिलाकर हनुमानजी को लेप किया जाता है.

हनुमानजी की भक्ति कलिकाल में सबसे ज्यादा प्रभावशाली और चमत्कारिक लाभ प्रदान करने वाली मानी गई है. हनुमानजी अतिशीघ्र प्रसन्न होते हैं. हनुमान जयंती हनुमानजी की उपासना का सबसे उत्तम दिन बताया गया है.

आज हम आपको हनुमानजी को प्रसन्न करने के सरल उपाय और साथ ही साथ हनुमानजी की साधना से जुड़े कुछ सरल उपाय बताएंगे. इन उपायों को टोटका कह दिया जाता है पर वास्तव में ये टोटके नहीं हैं.

हनुमानजी ने वानरकुल में अवतार लिया. अपने कुल की भी प्रतिष्ठा रखनी थी ताकि उनके साथ बाल्यकाल से लेकर युवावस्था तक सहचर के रूप में रहे वानर मित्रों को भी अपनत्व का भाव दिखे. हनुमानजी सबके लिए विनीतभाव से रहते हैं फिर मित्रों के साथ क्यों न रहते.

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वानरकुल पीपल के वृक्ष पर विशेष रूप से आश्रय लेते हैं. स्वयं नारायण अपने आपको वृक्षों में अश्वत्थ यानी पीपल मानते हैं और पीपल पर विशेष रूप से निवास करते हैं. जहां नारायणरूपी श्रीराम वहां-वहां हनुमान इसीलिए पीपल से जुड़े उपायों से हनुमानजी शीघ्रता से प्रसन्न होते हैं.

यानी आप कह सकते हैं कि सब के लिए सुलभ पीपल आपके लिए हनुमान जयंती को विशेष रूप से रामबाण जैसा सिद्ध हो सकता है. दरिद्रता, रोग, शत्रुभय आदि कई परेशानियों से मुक्ति के लिए हनुमान जयंती को पीपल के साथ जुडे कुछ पूजन से चमत्कार होता है और यह आजमाई हुई बात है.

हम आपको विस्तार से इन सरलतम और बिना खर्च वाले उपायों से परिचित कराते हैं जिनका निश्चित रूप से लाभ होता है. इन्हें आजमाकर एक बार देख तो लें. कोई हर्ज तो है नहीं.

हनुमान जयंती के बड़े प्रभावशाली उपाय जानें अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.

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