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पिछला भाग पढ़ने के लिये क्लिक करे पहले भाग में आपने पढ़ा कि शिव-पार्वती के अंश से उत्पन्न अंधक को महादेव ने असुरराज हिरण्याक्ष को दे दिया. अंधक ने ब्रह्माजी को प्रसन्नकर अपनी मृत्यु की शर्त रखी कि अपनी जननी पर आसक्ति उसकी मृत्यु का कारण बने.

अंधक अपनी जननीस्वरूपा माता पार्वती पर रीझ गया और उन्हें प्राप्त करने के लिए तरह-तरह के यत्न करने लगा. अंधकासुर के दूतों ने पार्वतीजी के रूप का जो वर्णन किया उसे सुनकर वह मोहित था.

उसने शिवजी के पास दूत भेजकर कहलवाया कि वह पार्वतीजी को अंधक को दे दें. महादेव ने उन्हें भगा दिया तो अंधक ने पार्वतीजी को बस से प्राप्त करने की कोशिश की. उसने सेना भेजकर कैलाश पर चढ़ाई की पर शिवगणों ने उसे मारकर भगा दिया.

इस पराजय से बौखलाया अंधकासुर बड़ी सेना लेकर स्वयं युद्ध के लिए आया. महादेव से उसका कई वर्षों तक संग्राम हुआ. महादेव अपना पुत्र समझकर उसका वध नहीं करना चाहते थे.
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