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इस पर वृषपर्वा ने देवयानी से कहा कि उसे प्रसन्न करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं. शर्मिष्ठा उसकी अपराधी है इसलिए वह जो चाहे उसके लिए दंड निर्धारित कर सकती. देवयानी ने सजा सुनाई- शर्मिष्ठा मेरे पति की दासी बनकर रहेगी.

शर्मिष्ठा समझदार थी. उसे पता था कि यदि दंड स्वीकार नहीं करती है तो शुक्राचार्य के क्रोध के कारण उसके कुल का नाश हो सकता है. उसने दंड स्वीकार किया और विवाह के बाद अपनी सखियों के साथ ययाति की दासी के रूप में आने को राजी हुई.

शुक्राचार्य ने ययाति से वचन लिया कि शर्मिष्ठा राजकुमारी है. अतुलित सुंदरी है. दासी पर राजा का अधिकारी होता है लेकिन शर्मिष्ठा के साथ वह कभी भी भूले से भी संबंध नहीं बनाएंगे. ययाति से वचन मिलने के बाद शुक्राचार्य ने देवयानी को विदा किया.

शर्मिष्ठा राजा ययाति की सेवा में आ गई और अन्य दासियों की तरह राजा के महल के समीप रहने लगी. कुछ समय तक तो ययाति शुक्राचार्य को दिए वचन से बंधे रहे लेकिन कच से देवयानी को मिला शाप पीछा कर रहा था.

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