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एक बार दानवराज वृषपर्वा की बेटी शर्मिष्ठा और शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी सखियों के साथ वन में घूमने गईं. सभी वस्त्र उतारकर सरोवर में जल विहार करने लगीं तभी शंकर भगवान उधर से निकले.
उन्हें देख सभी सखियों ने जल्दी-जल्दी में वस्त्र पहने. भूल से शर्मिष्ठा ने देवयानी के कपड़े पहन लिए. शर्मिष्ठा को अपने कपड़े पहने देख देवयानी आग-बबूला हो शर्मिष्ठा को खूब खरी-खोटी सुना दी.
इस अपमान से क्रोधित राजकुमारी ने देवयानी की पिटाई की और उसके कपड़े छीनकर कुएं में फेंक दिया. देवयोग से पुरुरवा के वंशज राजा ययाति वहां से निकले. कुएं में से देवयानी की पुकार सुनकर उसे बाहर निकाला और अपने वस्त्र दिए.
देवयानी ने ययाति से कहा- राजन, आपने मेरा हाथ पकड़कर मेरे प्राणों की रक्षा की है. अब किसी और को यह हाथ पकड़ने का अधिकार नहीं रह गया. मैं आज से अपना जीवन आपको समर्पित करता हूं और आपसे विवाह करना चाहती हूं.
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