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व्यास आसन पर बैठने की एक मर्यादा होती है. व्यास पीठ पर आसीन व्यक्ति अपने गुरू के अतिरिक्त किसी और के स्वागत अभ्यर्थना के लिए नहीं उठ सकता इससे व्यास पीठ का अपमान होता है.

उसी आसन की मर्यादा के लिए रोमहर्षण आपके पधारने पर उठे नहीं और आपने इसे अपना अपमान समझकर उनका वध कर दिया! व्यास गद्दी पर बैठा व्यक्ति ब्राह्मण ही होता है. आपने एक प्रकार से ब्राह्मण की हत्या की है. इसके लिए आपको ‘ब्रह्महत्या’ का दोष लगेगा.

आपने हम ऋषियों का भी बहुत अहित किया. रोमहर्षण के वध से पुराण विद्या के लोप होने का भय हो गया है. बिना सोचे-विचारे किए गए कार्य का दुष्परिणाम स्वयं अपने के अलावा बहुतों का अहित करता है.

बलभद्र दुख से सिर झुकाकर कहा- ऋषिवर! निश्चय ही मैं अपराधी हूं. मुझे नहीं पता था कि आप लोगों ने स्वयं रोमहर्षण को यह सम्मान दिया था. मैं अपने अपराध का फल भोगूंगा पर पुराण गाथा चलती रहे इसका क्या प्रबंध होगा?

शौनक ने कहा- रोमहर्षण का पुत्र उग्रश्रवा बहुत विद्वान हैं. हम उनसे बुलाकर पुराण-गाथा श्रवण करने का प्रबन्ध करेंगे. इस विद्या का लोप नहीं होने देंगे. श्रुति के माध्यम से हम इसे ग्रहण कर इसकी परम्परा बढ़ाते रहेंगे.

बलभद्र शौनक के चरणों पर गिरकर बोले- मुनिवर! उग्रश्रवा को बुलाकर व्यास गद्दी पर बैठाइए. मैं उनसे अपने अपराध की क्षमा-याचना करूँगा तथा ब्रह्मा-हत्या दोष के निवारण के लिए तीर्थों में घूम-घूमकर प्रायश्चित्त करूंगा.

ऋषि शौनक ने उग्रश्रवा को बुलाकर सारी स्थिति बतायी तथा उन्हें व्यास गद्दी पर बैठाया. बलभद्र ने अपने अपराध की क्षमा माँगी और प्रायश्चित्त के लिए चले गए.
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