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राजकुमार ने समझ लिया कि यही मौका है राजा को प्रभावित करने का. इससे उत्तम अवसर नहीं आएगा. इसलिए उसने अपनी ओजस्वी वाणी में राजा को अपने गुणों से परिचित कराने के निर्णय किया.
राजकुमार बोला- मेरे पिता एक नगर के राजा हैं. मैं वहां का राजकुमार. यह तो मेरे कर्म का दोष है कि आजकल मैं जिस राजा के राज में वर्तमान में रहता हूं, वह हजारों को पालता है पर उसकी निगाह मेरी और नहीं जाती.
राजन छ: बातें आदमी को हल्का करती हैं- खोटे मनुष्य का साथ, बिना कारण हंसी, स्त्री से विवाद, असज्जन स्वामी की सेवा, गधे की सवारी और बिना संस्कृत की भाषा.
हे महाराज! ये पाँच चीज़ें आदमी के पैदा होते ही विधाता उसके भाग्य में लिख देता है- आयु, कर्म, धन, विद्या और यश. राजन्, जब तक आदमी का पुण्य उदय रहता है, तब तक उसके बहुत-से दास रहते हैं.
यदि उदित पुण्य या अपने अच्छे समय में कोई और पुण्य कर ले तो ठीक अन्यथा पुण्य घट जाता है. पुण्य घट जाये तो फिर तो भाई भी बैरी हो जाते हैं.
पर एक बात तय है, स्वामी की सेवा अकारथ नहीं जाती. कभी-न-कभी फल मिल ही जाता है. मैं अच्छे स्वामी की खोज में यहां तक आप से ही मिलने आया था. मुझे इतनी बात आपसे कहनी थी.
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