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मिथलावती नाम की एक नगरी थी. उसमें गुणाधिप नामक राजा राज करता था. मिथिलावती में कई दिनों से कहीं दूर से आया एक सजीला युवक रह रहा था.

था तो वह कहीं का राजकुमार पर राजा गुणाधिप की महानता की कहानियां सुनकर उनकी सेवा में रहना चाहता था. राजा की सेवा में रहने के लिए उसने बहुत से प्रयास किए पर राजा तक पहुंच नहीं पाया.

राजा से उसकी भेंट तो न हो सकी पर वह जो कुछ अपने साथ लाया था, वह सब खर्च और खत्म हो गया. खाने पीने के अभाव में वह दुबला होता जा रहा था.

एक दिन राजा शिकार खेलने चला, राजा के पीछे पीछे उसके विश्वस्त और सेना भी चली. राजा को प्रेम करने वाली जनता में से कुछ लोग चले तो भीड में राजकुमार भी साथ हो लिया.

चलते-चलते राजा एक सघन वन में पहुँचा. राजा बेपरवाह बढ़ता गया. इस कारण पहले तो उसके संगी साथी और विश्वस्त और बाद में उसके नौकर-चाकर तक उससे बिछुड़ गए.

राजकुमार को तो राजा से मिलने की लगन थी, वह निरंतर उसके पीछे चलता रहा. अंतत: राजा के साथ अकेला वह राजकुमार रह गया. उसने राजा को आगे गहरे जंगल में अकेले जाने से सावधान करते हुए ठहर जाने की प्रार्थना की.

राजा ने उसकी ओर देखा और पूछा- तुम कौन? मेरे राज्य मिथिलावती से हो या कहीं और से है. युवक होकर भी शरीर से इतना दुर्बल क्यों हो? यहां आने का क्या प्रयोजन है?

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