October 8, 2025

विक्रम-बेताल संवादः कन्या का पति होने का अधिकारी कौन हो, कन्या के अपहर्ता को खोजने वाला, उस तक पहुंचाने वाला या अपहर्ता का वध करने वाला?

krishna
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वेताल के रूप में उपस्थित शिव के प्रतिनिधि रुद्र किंकर यानी वेताल ने राजा विक्रमादित्य से कहा– राजन! उज्जयिनी में एक राजा राज करता था. यह चन्द्रवंशीय राजा अत्यंत बुद्धिमान तथा वीर होने के साथ ही वेद पुराणों का ज्ञाता भी था.

राज का नाम महाबल था. उसका हरिदास नाम का एक दूत बड़ा ही स्वामीभक्त था. हरिदास की पत्नी भक्तिमाला अपने नाम के अनुसार साधु पुरुषों की सेवा भक्ति में लगी ही रहती थी.

भक्तिमाला को एक बेटी हुई जो अत्यंत रूपवती होने के साथ साथ बहुत सी कलाओं और विद्याओं की जानकार भी थी. भक्तिमाला ने उसका नाम रखा था, महादेवी.

एक दिन महादेवी ने अपने पिता हरिदास से कहा– ‘पिताजी! आप मेरा हाथ किसी ऐसे पुरुष को दीजियेगा, जो गुणों में मुझसे भी अधिक योग्य हो, अन्यथा अविवाहित रखना.

पुत्री की बात सुनकर हरिदास बड़ा प्रसन्न हुआ और ‘ऐसा ही होगा, बेटी ’ कहकर उस दिन राजसभा में आया तो राजा उसकी प्रतीक्षा में थे.

राजा ने कहा– ‘हरिदास! तुम तैलंग देश के राजा और मेरे ससुर हरिश्चन्द्र के पास चले जाओ. उनका हाल चाल कर जानकर बिना अधिक विलंब किये लौट कर मुझे बताओ.

हरिदास आज्ञा पाकर तत्काल राजा हरिश्चन्द्र का कुशल जानने तैलंग देश को चल दिया. शीघ्र ही हरिदास तैलंग देश पहुंचा और उसने उन्हें अपने स्वामी महाबल का कुशल-समाचार राजा हरिश्चंद्र को विस्तार से बताया.

हर तरह के कुशल-समाचार भलीभांति जानकर राजा हरिश्चंद्र अत्यंत प्रसन्न ही नहीं हुए बल्कि हरिदास की बातों से बहुत प्रभावित भी हुए. हरिश्चंद्र ने हरिदास से पूछा- आप विद्वान हैं. मुझे बताएं कि कलियुग के आगमन का हमे कैसे पता चलेगा?

हरिदास ने कहा– राजन! पाप की स्त्री का नाम है झूठ, उसके बेटे का नाम है दुःख. दुःख की पत्नी है दुर्गति, जो कलियुग में घर-घर में व्याप्त रहेगी. उस समय सभी राजा विवेकी से अधिक क्रोधी और सभी ब्राह्मण काम के दास हो जायेंगे.

धनिक वर्ग लोभ के वशीभूत हो अनर्थ करेंगे. स्त्रियां लज्जा त्याग देंगी तथा सेवक ही स्वामी के प्राण हरण करने वाले होंगे. धरती बंजर सरीखी हो जाएगी तो ऐसी स्थिति में समझना चाहिए कि कलि का आगमन हो गया हैं.

राजन ऐसी कलियुग की विषम स्थिति में भी जो मनुष्य भगवान् श्रीहरि की शरण में जाएंगे, वे आनन्द से रह पाएंगे, अन्य सभी बहुत कष्ट उठाएंगे.

हरिदास का उत्तर सुनकर राजा हरिश्चन्द्र बहुत प्रसन्न हुए और उसे बहुत सी दक्षिणा देकर विदा किया. हरिदास अपने नगर पहुंचा और राजा महाबल को राजा हरिश्चन्द्र का सरा हाल चाल बता कर घर पर आया.

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