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रूक्मिणीहरण के दौरान श्रीकृष्ण से रूक्मी के प्राण बचाते हुए बलरामजी ने रुक्मी का आधा सिर मूंडकर, आधी मूंछ काटकर जीवनदान दे दिया था. इस अपमान को रूक्मी मृत्यु से बड़ा दंड मानता था.
बलरामजी को पासे डालने तो आते नहीं थे परन्तु उन्हें इस खेल में बड़ी रूचि थी. यह बात रूक्मी को भी पता थी. मित्र के बहकावे में रुक्मी ने बलरामजी को बुलवाया और उनसे जुआ खेलने को कहा.
श्रीकृष्ण ने जब देखा कि रूक्मी उन्हें खेलने के लिए ले जा रहा है तो उन्होंने रूक्मी को समझाया कि मंगल कार्यों में किसी को व्यसन के लिए प्रेरित न करें. इससे अमंगल हो सकता है.
रूक्मी के सिर पर तो काल सवार था. उसने प्रभु का सुझाव नहीं माना. उसने बलरामजी फिर से ललकारा तो बलरामजी तैश में आकर जुआ खेलने के लिए बैठ ही गए.
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आपके द्वारा दी गई कथाएँ काफी रोचक व ग्यानबर्धक है आपको कोटि कोटि आभार