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इन्द्र ब्राह्मण बनकर राजा भंगस्वाना के राज्य में पहुंचे. अपने कर्मकांडों, ज्योतिष आदि की जानकारी से सबको प्रभावित कर लिया. उनकी महल में पैठ बन गई. ब्राह्मण रूप में वह बेरोकटोक सभी सभी राजकुमारों के कक्ष में जाते थे. सबका विश्वास जीतने के बाद उन्होंने उनके कान भरने शुरू कर दिए.
इंद्र के भड़कावे में आकर भाई-भाई आपस में लड़ पड़े. भीषण मार काट मची और सबने एक दूसरे को मार डाला. भंगस्वाना को जंगल में यह बात पता चली तो वह गहरे शोक में डूबकर रोने लगा.
राजा रोते-रोते कहता कि जिसके लिए हमने अग्निष्टुता यज्ञ कराया पुत्र प्राप्त किए वे न रहे. जिन संतानों को नारी बनकर प्राप्त किया वे भी न रहे. हे ईश्वर मेरा क्या अपराध है!
विलाप करते भंगस्वाना के घाव पर नमक लगाने की नीयत से ब्राह्मण रूप में इंद्र वहां पहुंचे और पूछा- सुंदरी क्यों रो रही हो?
भंगस्वना ने पूरी घटना बताई तो इन्द्र अपने असली रूप में आ गए.
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इंद्र ने कहा- देखा तुमने क्या गलती की थी मुझे सम्मान न देकर. तुमने अग्नि की पूजा की परंतु मेरा निरादर किया इसलिए मैंने ही रचा था यह सारा खेला.
भंगस्वाना इन्द्र के पैरों में गिर गए और अनजाने में हुए अपराध के लिए क्षमा मांगी. इन्द्र को भी दया आ गई. उन्होंने भंगस्वाना के सामने एक प्रस्ताव रखा. एक ऐसा प्रस्ताव जो किसी भी स्त्री के लिए हृदयघाती हो.
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