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राजा भंगस्वाना रो-रोकर कहता- हे भगवान! आदमी से औरत बन जाने के बाद कैसे अपने राज्य में क्या मुंह लेकर वापस जाउं? मेरे अग्नीष्टुता हवन से मेरे 100 पुत्र हुए हैं उन्हें मैं अब कैसे मिलूंगा. अपने मंत्रियों सेनापति से क्या कहूंगा? मेरी रानी, महारानी जो मेरी प्रतीक्षा कर रहीं हैं, उनसे कैसे मिलूंगा? मेरा पौरुष ही नहीं गया मेरा राज-पाट सब चला जाएगा. मेरी प्रिय प्रजा का क्या होगा, मैं जैसे उन्हें पुत्रों की तरह पालता था कौन पालेगा?
राजा का सम्मोहन अब हट चुका था. अब वह दिशाएं और रास्ता पहचानने लगा था, इस तरह से विलाप करता हुआ वह वापस लौटा. औरत बना राजा वापस पहुंचा तो उसे देखकर सभी लोग अचंभित रह गए.
राजा ने सभा बुलाकर अपनी रानियों, बेटों और मंत्रियों से कहा कि अब मैं राज-पाट संभालने के लायक तो रहा नहीं, इसलिए मैं जंगल में शेष जीवन बिताऊंगा. यहां का कामकाज आप लोग देखें.
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औरत बना राजा जंगल जाकर एक तपस्वी के आश्रम में रहने लगा. राजकुल का होने के कारण उसमें सौंदर्य बोध भरपूर था. व्यवस्था करने की कला भी उसे भरपूर आती थी. तपस्वी इस सुंदरी के सलीके, रहन सहन तथा सुंदरता पर मोहित हो गए. भंगस्वाना भी स्त्रीरूप को अब सहजता से स्वीकार चुका था और स्वयं को स्त्री मानने लगा.
उसमें स्त्रियो की तरह कामेच्छा उत्पन्न होने लगी. रजोनिवृति के बाद वह संभोग को आतुर रहने लगा. तपस्वी उसपर मोहित थे ही. स्त्री बने भंगस्वाना ने तपस्वी को अपना लिया. मिलन से उसने कई संतानों को जन्म दिया.
भंगस्वाना के पुत्र उससे लंबे समय बाद मिलने वन में आए. वहां उसने अपनी नई संतानों से परिचित कराया. रानियों को कहा कि इन्हें भी अपने पुत्र की तरह समझो. इनमें भी राजकुल का रक्त है इसलिए जीवन में सुख-विलास इन्हें भी भोगने का अवसर मिलना चाहिए.
राजकुमार और रानियां इससे सहमत थे और स्त्रीरूप में जन्म दिए भंगस्वाना की संतानों को साथ ले गए. राज्य की जनता ने सहयोग दिया और सभी भाई मिलकर राज्य संभालने लगे.
सब को सुखी देखकर देवराज इन्द्र में बदले की भावना फिर सुलगने लगी.
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