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अधिकारी तत्काल बूढे को साथ लेकर उसके बेटों के पास पहुंचे. उनसे एक दूसरी कहानी पता चली. कुरुक्षेत्र तीर्थ में कौशिक ऋषि निवास करते थे. उनके सात बेटे थे- स्वसृप, क्रोधन, हिंस्त्र, विश्रुत, कवि, वाग्दुष्ट और पितृवर्ती.
भगवान की ऐसी माया कि यहां कई साल पानी न बरसा. भीषण अकाल पड़ा. अकाल के कारण जब सातों भाई भूख मिटाने का कोई उपाय न ढूंढ सके तो पितृवर्ती ने सलाह दी क्यों न अपना श्राद्धकर प्राण त्याग दिया जाए.
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भाई की सलाह पर सबने वैसा ही किया. समय बीता. मौत के बाद वे सभी दाशपुर या मंदसौर नाम के नगर में बहेलिया होकर जन्मे. खास बात यह थी कि श्राद्ध करने के चलते उन्हें पिछले जन्मों की याद बनी रही. सो बहेलिया होने पर भी वे बड़े ही नियम धर्म से रहते थे.
पिछले जन्म के पुण्यफल से उनके भीतर वैरागी बनने की इच्छा हुई. उन्होंने अनशन करके अपना शरीर त्याग दिए. अगले जन्म में वे कालंजर पर्वत पर भगवान् नीलकंठ के सामने हिरन बन गये.
हिरन बन जाने के बावजूद श्राद्धकर्म से मिला पुण्य काम आ रहा था. इस जन्म में भी उनको पहले जन्म की याद बनी रही. इस बार भी उन लोगों ने तीर्थस्थान में अनशन करते हुए प्राण त्यागे.
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इसके बाद सातों ने मानसरोवर में चकवे के रूप में जन्म लिया. तीन भाई मानसरोवर छोड़कर इधर-उधर घूमने लगे. बाकी चार वहीं रहे. घूमते घामते चकवा पक्षी बने इन भाइयों ने पांचाल नरेश ब्रह्मदत्त को अपनी रानियों के साथ जल विहार करते हुए देखा.
उस राजा का शानदार जीवन देख पितृभक्त, श्राद्धकर्ता पितृवर्ती के दिल में राजा बनने की इच्छा हुई. दूसरे दो चकवे भाइयों को लगा कि मंत्री बनने में भी बड़ा मजा है. उनमें मंत्री पद पाने की इच्छा हो गई.
एक चकवा तो राजा विभ्राज के पुत्र रूप में ब्रह्मदत नाम से पैदा हुआ. बाकी दो कंडरीक और सुबालक नाम से मंत्री के पुत्र हुए. राजा विभ्राज की मौत के बाद एक तो ब्रह्मदत नाम का राजा हुआ. दोनो मंत्री पुत्र भी उसके साथ मंत्री बन गये.
बचे चारों भाई आगे चलकर ब्राह्मण कुल में पैदा हुए. यह ब्राह्मण सुदरिद्र था जिसके वे चारों बेटे बने. सुदरिद्र राजा ब्रह्मदत के पांचाल नगर के करीब के गांव में रहता था. हर बार की तरह इस बार भी इन चारों को अपने पिछले जन्म की सारी बातें याद थीं.
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अपने बारे में सब पता रहने के चलते इस बार भी उनमें वैराग्य एवं तपस्या इच्छा पैदा हुई सो एक दिन चारों भाइयों ने अपने पिता सुदरिद्र से कहा- पिताजी! हम लोग तपस्या करके परमसिद्धि पाना चाहते हैं.
बेटों की बात सुनकर बहुत बूढे हो चुके सुदरिद्र घबराकर बोले- दरिद्र पिता को छोड़कर तुम लोग वनवासी होना चाहते हो? यह तो कोई धर्म न हुआ. पिता ने उन्हें वन जाने से मना कर दिया.
बच्चों ने कहा- पिताजी! इसकी चिंता न करें. बस आप कल सुबह राजा ब्रह्मदत के सामने जाकर यह श्लोक पढ़ दें तो आपके जीवनयापन का प्रबंध हो जाएगा. बेटों के कहने पर सुदरिद्र ने उन्हें श्लोक सुनाया.
सुनते ही राजा और दोनों मंत्रियों को अपने सारे जन्म याद आ गये. वे अचेत होकर गिर पड़े. बेहोशी दूर हुयी तो राजा ने अपने बेटे को राजपाट सौंप दिया और जंगल चले गए.
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वन में श्रीविष्णु का ध्यान करते हुए परमपद पा लिया. इस तरह तीनों चकवा भाई जो राह भटक गये थे फिर रास्ते पर आ वैरागी बन गये. यह सब उनके द्वारा एक जन्म में विधि विधान से किये गये श्राद्ध का ही सुफल था. (स्रोतः मत्स्य पुराण)
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