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पिछली कथा से आगे
वररुचि पिशाच कानभूति को कथा सुनाता रहा. एक बार भगवान शिव और पार्वती आकाश विहार करने को निकले. घूमते घामते वे समुद्र तट पर बसी चिंचिनी नामक नगरी के ऊपर से गुजरे.
माता पार्वती ने तीन स्त्रियों को देखा. तीनों एक बच्चे को अपनी अपनी गोद में लेकर बारी-बारी से उसे खिला रही थीं और प्रेम से गदगद हो रही थीं. यह अनुपम दृश्य देखकर पार्वतीजी बहुत खुश हुईं.
शिवजी से बोलीं- देखिये तो भगवन, ये तीनों बहनें उस बच्चे को कैसे स्नेह प्रेम से खिला रही हैं. इन औरतों को विश्वास है कि यह बच्चा बड़ा होकर उनका लालन-पालन करेगा, देखभाल करेगा. कितनी आशायें उन्होंने इस बच्चे से पाल रखी हैं.
भगवन,अब आप इन नारियों पर दया कर कुछ ऐसा कर दें ताकि यह बच्चा आगे चलकर अपनी माताओं का भली भांति, ध्यान रख सके. शिवजी बोले- देवी! इस बच्चे ने पिछले जन्म में अपनी पत्नी के साथ मेरी बड़ी आराधना की है.
तब इसकी पत्नी थी पाटली. इस समय वह राजा महेंद्र वर्मा की बेटी है. इस जन्म में भी वह फिर इसकी पत्नी होगी. तुम कह रही हो, तो मैं इन दुखियारी माताओं को कुछ आश्वासन तो अभी दिए देता हूं. वैसे मैं इनकी थोड़ी कथा भी बता देता हूं.
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