पिछली कथा से आगे...
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बधिकों ने किसी पशु का रक्त अपने हथियारों पर लगा कर सबूत दिखाया और उन्होंने पुत्रक के पिता और उसके भाइयों से झूठ कह दिया कि हमने पुत्रक को मार डाला है.
वे तीनों प्रसन्नमन और संतुष्ट होकर चिन्चनी नगरी लौट आए. बहाना बनाया कि पुत्रक कहीं डूब मरा. पुत्रक के मंत्रियों को उन पर संदेह हुआ और मंत्रियों ने उन तीनों को मरवा डाला.
इधर पुत्रक ने रिश्ते नाते की यह दशा देखी तो संसार की मोह माया त्यागकर विन्ध्य के घने जंगलों में चला गया. वहां घूमते हुए उसे दो राक्षसों को लड़ने के लिये एक दूसरे को ललकारते देखा.
उसने राक्षसों से पूछा- तुम लोग कौन हो और क्यों लड़ना चाहते हो? राक्षसों ने कहा – हम दोनों मयासुर के लड़के हैं. हमारे पास पिता के छोड़े धन के रूप में एक बरतन, एक लाठी और दो खडाऊं हैं.
हम दोनों में जो बलवान होगा, वह इस धन को प्राप्त करेगा. इसलिए अब हम अपने इस धन के लिए युद्ध करने वाले हैं. पुत्रक को उनकी बात सुन कर हंसी आ गयी.
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