shankar bhagwan
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श्राद्धदेव मनु के सबसे छोटे पुत्र का नाम था नभग. मनुपुत्र नभग को स्वयं भगवान शिव ने दीक्षा प्रदान की थी. नभग का अध्य्यन आदि में ही ध्यान ज्यादा रहा.

शिक्षा पूरी करके जब नभग घर लौटे तो पता चला कि इच्छवाकु आदि भाइयों ने पिता के राज्य का आपस में बंटवारा कर लिया है. वे अपना-अपना भाग लेकर राजकाज में लग गए हैं.

नभग ने भाइयों से कहा कि मेरे लिए आपने तय किया है. मेरा भाग तय किए बिना यह बंटवारा धर्मविरुद्ध होगा. भाइयों ने कहा कि जब संपत्ति का बंटवारा हो रहा था, तब हम तुम्हारा भाग निकालना भूल गए थे.

सोच-विचारकर नभग के भाई बोले- अब हम पिताजी को ही तुम्हारे हिस्से में देते हैं. नभग को आश्चर्य हुआ. उन्होंने पिता को सारी बात बताई तो वह बोले- तुम्हारे भाइयों ने तुम्हें ठगने के लिए यह बात कही है.

नभग पिता को ही अपने हिस्से की संपत्ति मानकर उनकी सेवा करने लगे. आय का स्रोत न होने से समय कष्टमय बीत रहा था. एक दिन मनु ने कहा- इस समय अंगिरस गोत्र के ब्राह्मण बड़ा यज्ञ कर रहे हैं.

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