विद्यार्थियों और कलाकारों को विशेषरूप से शारदा देवी की आराधना करनी चाहिए. माता सरस्वती की पूजा घर में कर सकते हैं. पूजन यदि किसी वेदपाठी पुरोहित से कराएं तो उत्तम है.
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यदि वेदपाठी पुरोहित उपलब्ध नहीं है तो भी परेशान होने की बात नहीं. हम आपको पूजा की सरल विधि बता रहे हैं. जिससे आप स्वयं घर में पूजन कर सकते हैं.
इस पूजा में 15-20 मिनट का समय लग सकता है. ईश्वर की आराधना जरूरी है. भक्तिभाव से पूर्ण होकर पूजन करें तो सामग्रियों का अभाव भी क्षम्य है.
आप जितना संभव हो उतना ही सही लेकिन पूजन अवश्य करें. यदि किसी कारणवश विधिवत सामग्री के साथ पूजा करने की स्थिति में नहीं है फिर भी माता की आराधना वसंत पंचमी को अवश्य कर लेनी चाहिए.
यदि कुछ भी संभव नहीं तो माता की प्रतिमा के सामने धूप अगरबत्ती जला लें. फिर गणेशजी की स्तुति करें और उसके बाद सरस्वती मंत्र एवं सरस्वती चालीसा पढ़ लें.
ये सभी मंत्र प्रभु शरणम् एप्प में पहले से मौजूद हैं. आपके पास एप्प न हो तो इस पोस्ट के अंत में लिंक है उससे डाउनलोड कर लें. आप सुझाव मानें तो एप्प को ही डाउनलोड कर लें एप्प से देखकर पूजा बहुत सरल हो जाएगी. न पसंद आए तो डिलिट कर दि
जो लोग विधिवत पूजा करने की अभिलाषा रखते हैं लेकिन उन्हें वेदपाठी ब्राह्मण उपलब्ध नहीं हो पा रहे तो उन्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. हम सरल वैदिक विधि आपको बता रहे हैं जिससे माता शारदे की पूजा करें.
माता सरस्वती पूजन की संक्षिप्त शास्त्रीय विधिः
शास्त्रीय विधि से पूजा में सबसे पहले स्वयं को पूजा के लिए तैयार किया जाता है. उसके बाद गणपतिजी का अह्वान, वरूण देव एवं नवग्रहों की पूजा की जाती है. तत्पश्चात इष्ट की पूजा की जाती है.
इसलिए हम आपको चरणबद्ध तरीके से सारी पूजा बता रहे हैं.
सबसे पहले मां सरस्वती की प्रतिमा अथवा चित्र को सामने रखकर. उन्हें आसन दें. उनके सामने धूप-दीप और अगरबत्ती जलाएं. इसके बाद पूजन आरंभ करें.
आप जिस आसन पर बैठकर पूजा करने वाले हैं उस आसन को और स्वयं को निम्न मंत्र से पवित्र करेः
आसान मंत्र है इसे पढ़ते हुए पुष्प से तीन बार जल स्वयं पर और आसन पर छिड़कें-
“ऊं अपवित्र: पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:॥”
इसके बाद आचमन करें. आपने कभी पूजा में देखा होगा पंडितजी आचमन कैसे कराते हैं. उसे याद करिए. थोड़ा जल हथेली में लेकर पीते हुए आचमन करना चाहिए. आचमन का बहुत सरल मंत्र हैं-
ऊं केशवाय नम:, ऊं माधवाय नम:, ऊं नारायणाय नम:,
आचमन के बाद हाथ धो लेना चाहिए.
आपने शुद्धि और आचमन दोनों कर लिया. यदि चंदन उपलब्ध है तो अपनी अनामिका उंगली यानी रिंग फिंगर से चंदन ललाट पर लगा लें.
चंदन लगाते समय यह मंत्र पढ़ें-
‘चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्
आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।’
संकल्पः
कोई भी पूजा बिना संकल्प लिए पूर्ण नहीं होती. आपको भी देवी की पूजा का संकल्प लेना चाहिए.
संकल्प ऐसे ले सकते हैं- हाथ में तिल, फूल, अक्षत, मिठाई और फल लेकर बोलें- “यथा उपलब्ध पूजन सामग्रीभिः भगवत्या: सरस्वत्या: पूजनम् अहं करिष्ये” अर्थात जो भी उपलब्ध पूजन साधन-सामग्री है उससे हे माता सरस्वती में आपकी पूजा का संकल्प करता हूं.
इस मंत्र को बोलते हुए हाथ में रखी हुई सामग्री मां सरस्वती के सामने रख दें. इसके बाद प्रत्येक पूजन में प्रथम आराध्य भगवान गणपति की पूजा करें.
गणपति पूजनः
हाथ में फूल लें और गणपति का ध्यान इस मंत्र से करें –
गजाननं भूत गणादि सेवितं कपित्थ जम्बूफल चारुभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम्।
गणेशजी को अक्षत, दूर्वा, जल, लाल चंदन, सिंदूर, फल-फूल, मेवा आदि समर्पित करें. तुलसी बिलकुल न चढ़ाएं.
आप चाहें तो भगवान गणेशजी को ये वस्तुएं अर्पित करते हुए एक सरल मंत्र का पाठ कर सकते हैं.
रक्त चंदन: इदम् रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:,
इसी प्रकार सिन्दूर के लिए “इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:
दूर्वा और विल्बपत्र फल-फूल आदि चढ़ाते समय एक ही मंत्र है- उसमें केवल वस्तु का नाम बदलना होता है. जैसे गणेश जी को वस्त्र पहनाते समय वस्त्र का यह मंत्र बोलें-
इदं पीत वस्त्रं ऊं गं गणपतये समर्पयामि।
यदि फूल चढ़ाना हो तो कहें-
इदं पुष्पं ऊं गं गणपतये समर्पयामि.
फल के लिए-
इदं फलं ऊं गं गणपत्ये समर्पयामि.
मिठाई के लिए-
इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि:।
जैसे हम भोजन करने के बाद हाथ धोते हैं वैसे ही प्रसाद चढ़ाने के बाद भगवान को आचमन जरूर कराना चाहिए. फूल या पल्लव से जल छिड़कते हुए कहें-
इदं आचमनयं ऊं गं गणपतये नम:
इसके बाद पान-सुपारी से मुखशुद्धि कराएं-
इदं ताम्बूल पुगीफलं समायुक्तं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:.
इसी प्रकार से नवग्रहों की पूजा की जाती है. समय के अभाव में नवग्रहों के मंत्र पढ़ लें और उनसे त्रुटियों को क्षमा कर कल्याण करने की याचना कर लें.
नवग्रह मंत्रः
ब्रह्मामुरारि त्रिपुरांतकारि भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्रः शनि राहुकेतवः सर्वेग्रहा शांतिकराः भवन्तु।।
कलश पूजनः
पूजा में कलश पूजन का महत्व है. घरों में होने वाली पूजा में आमतौर पर लोग कलशपूजन नहीं कर पाते, लेकिन जो कलश पूजन करना चाहते हों वे समझ लें-
घड़े या लोटे पर मोली बांधकर कलश के ऊपर आम का पल्लव रखें. कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत और सिक्के रखें. कलश के गले में मोली लपेटें.
नारियल पर वस्त्र लपेट कर कलश पर रखें. हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरूण देवता का कलश में आह्वान करें.
ओ३म् तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि: अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:। (अस्मिन कलशे वरुणं सांगं सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि, ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥)
इसके बाद जिस प्रकार गणेश जी की पूजा की है उसी प्रकार वरूण और इन्द्र देवता को जल, अक्षत, फल-फूल, मेवा आदि चढ़ाकर पूजा करें.
इसके बाद सरस्वती पूजन करना चाहिए. सबसे पहले माता सरस्वती का ध्यान करें
या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।।
या ब्रह्म अच्युत शंकर प्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा।।1।।
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमांद्यां जगद्व्यापनीं ।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यांधकारपहाम्।।
हस्ते स्फाटिक मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।2।।
इसके बाद सरस्वती देवी की प्रतिष्ठा करें. यानी उन्हें स्थापित करें. इसके लिए हाथ में अक्षत लेकर बोलें “ॐ भूर्भुवः स्वः महासरस्वती, इहागच्छ इह तिष्ठ।
इस मंत्र को बोलकर अक्षत छोड़ें। फिर जल लेकर ‘एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।”
प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं: ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।।
ॐ सरस्वतयै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’ इस मंत्र से पुष्प चढ़ाएं फिर माला पहनाएं. इदं पीत वस्त्रं समर्पयामि-कहकर पीला वस्त्र पहनाएं.
नैवैद्य अर्पण
पूजन के बाद देवी को “इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं सरस्वतयै समर्पयामि” मंत्र से नैवैद्य अर्पित करें. प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें.
आचमन का मंत्रः
इदं आचमनयं ऊं सरस्वतयै नम:।
इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें:
इदं ताम्बूल पुगीफलं समायुक्तं ऊं सरस्वतयै समर्पयामि।
अब एक फूल लेकर सरस्वती देवी पर चढ़ाएं और बोलें:
एष: पुष्पान्जलि ऊं सरस्वतयै नम:.
इसके बाद एक फूल लेकर उसमें चंदन और अक्षत लगाकर किताब कॉपी पर रख दें.
पूजन के पश्चात् सरस्वती माता के नाम से हवन करें. स्वच्छ भूमि पर बने हवन कुण्ड में अग्नि प्रज्वलित करें.
सर्वप्रथम ‘ऊं गं गणपतये नम: स्वाहा. मंत्र से गणेशजी को हवन समर्पित करें.’ऊं नवग्रह नमः स्वाहा मंत्र से नवग्रह का.
उसके बाद सरस्वती माता के मंत्र ‘ॐ सरस्वतयै नमः स्वाहा’ से संभव हो तो 108 बार हवन करें. हवन का भभूत माथे पर लगाएं.
श्रद्धापूर्वक प्रसाद ग्रहण करें इसके बाद सभी में वितरित करें.
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