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कश्यप और दिति के बीच तर्क-वितर्क चलता रहा. कश्यप के तर्कों से दिति संतुष्ट न हुई. आखिरकार न चाहते हुए भी कश्यप को संध्याकाल में सहवास करना पड़ा.
कश्यप इस अपराध का प्रायश्चित करने चले गए. बाद में दिति को भी बड़ा पछतावा हुआ. काम का प्रभाव मस्तिष्क से उतरा तो उन्हें अपने कार्य के लिए ग्लानि होने लगी.
उन्होंने अपने पति कश्यप से और बहनोई महादेव से बार-बार क्षमा मांगी.
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कश्यप क्रोध में थे. उन्होंने कहा- दिति तुमने काम से पीड़ित होकर महादेव का अपमान किया. इससे तुम्हारी कोख से पैदा होने वाली संतानें असुर होंगी और संसार को पीड़ा देंगी.
उनके कर्मों से ऋषि-मुनि, देव-गंधर्व, स्त्री-पुरूण और स्वयं त्रिदेव पीड़ित होंगे. तुमने वैदिक आचार और लोक आचार दोनों को भंग किया है इसलिए तुम्हारी संताने वैदिक और सांसारिक मर्यादाओं का भी मान नहीं रखेंगी.
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अपनी संतानों का चरित्र सुनकर अदिति विलाप करने लगीं. वह बार-बार कश्यप तथा त्रिदेवों से क्षमा मांगने लगीं. कश्यप का क्रोध भी पत्नी के विलाप को देखकर शांत होने लगा.
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