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एक राजा अपनी प्रजा का खूब ध्यान रखता. प्रजा के कल्याण में हमेशा प्रयत्नशील रहता था. प्रजा के कल्याण में डूबे राजा ने कभी अपने सुख, ऐशो-आराम की चिंता ही नहीं की.
राजा स्वभाव से धार्मिक था और उसे पता था भगवत भजन, पूजा-पाठ आदि से मोक्ष के द्वार खुलते हैं लेकिन उसका सारा समय तो सेवाकार्य में बीत जाता इस कारण वह भजन पूजन के लिए समय ही नहीं निकाल पाता.
एक सुबह राजा वन की तरफ घूमने निकला. उसे एक देव के दर्शन हुए जिनके हाथों में एक लंबी चौड़ी दिव्य पुस्तक दिखी. राजा ने देव का अभिनन्दन कर पुस्तक के बारे में पूछा.
देव बोले- यह हमारा बहीखाता है, जिसमे सभी भजन-पूजन करने वालों के नाम हैं. राजा ने अनमने भाव से पूछ ही लिया- आशा तो नहीं फिर भी इस किताब में कहीं मेरा नाम भी है क्या?”
देवता ने किताब का सारा पन्ना पलट डाला लगे, परन्तु राजा का नाम कहीं नजर नहीं आया. राजा ने कहा- वास्तव में ये मेरा दुर्भाग्य है कि मैं भजन-कीर्तन के लिए समय नहीं निकाल पाता इसीलिए मेरा नाम यहां नहीं है.
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