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शमीकपुत्र ऋंगी ने राजा परीक्षित को सात दिनों के अंदर सांप के काटने से मृत्यु का शाप दे दिया था. परीक्षित जीवन के अंतिम क्षणों में शुकदेव से भागवत सुन रहे थे.
परीक्षित ने पूछा- महर्षि! संसार में जीवों में इतनी भिन्नता क्यों हैं. कोई राजा तो कोई दास क्यों होता है? प्राणियों का जन्म क्यों होता है?
शुकदेव बोले- प्राणी कर्मों के आधार पर स्वर्ग, नर्क और फिर से पृथ्वी पर जन्म का कष्ट भोगता है. सात्विक, राजस और तामस ये तीन प्रकार के कर्म होते हैं.
इन्हीं कर्मों के आधार पर प्राणी की गति तय होती है. निषिद्ध यानी वर्जित कर्म करने वाला प्राणी नर्क का भागी तो अच्छे कर्म वाला स्वर्ग भोगता है.
नर्क और स्वर्ग भोगने के बाद जब अधिकांश पाप और पुण्य क्षीण हो जाते हैं, तब बचे हुए पुण्य रूपी कर्मों को प्राणी तब तक इसी लोक में जन्म लेने के लिए आता रहता है जब तक उसे मोक्ष न मिल जाए.
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