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ज्योतिषशास्त्र में दांपत्य सुख यानी वैवाहिक सुख पर बड़ी गहन चर्चा है. विवाह योग जीवन का एक महत्वपूर्ण संस्कार है. वर्तमान में ज्योतिषियों से सबसे ज्यादा प्रश्न वैवाहिक जीवन और संतान संबंधित ही पूछे जा रहे हैं. यानी दांपत्य जीवन में बाधा बढ़ी है.
इसके कारण बहुत हैं. विस्तृत विषय है इसकी विवेचना समय-समय पर करेंगे. आज मैं आपको कुंडली पर आधारित दांपत्य जीवन के सरल विश्लेषण और उसकी बाधाएं दूर करने के कुछ प्रभावी ज्योतिषिय समाधान बता रहा हूं.
कुंडली में दांपत्य जीवन का विचार सप्तम भाव यानी सातवें घर से किया जाता है. सातवां घर कौन सा है यह आप अपनी कुंडली में देख सकते हैं. उसमें सांतवें घर के लिए उसकी संख्या लिखी होती है.
खींची रेखाओं इसमें गुरू और शुक्र की बड़ी भूमिका होती है. गुरू और शुक्र की स्थिति आपके दांपत्य जीवन की दिशा तय करने में बड़ा रोल निभाती है.
यदि इसमें कोई बाधा आती है तो दांपत्य जीवन कष्टमय होता है. किन-किन परिस्थितियों में आपका दांपत्य जीवन कष्टमय हो सकता है, आइए समझते हैं-
-यदि किसी की कुंडली का सप्तम भाव पीड़ित हो यानी सांतवें घर में सूर्य, मंगल, शनि, राहु और केतु जैसे पाप ग्रह बैठे हों.
-सप्तम भाव में पापग्रह बैठा भले न हो लेकिन उस पर किसी पापग्रह की दृष्टि हो.
-शुक्र पापग्रह से पीड़ित हो.
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