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वह इस बात से अंजान था कि पार्वती ने उसे पुत्र रूप में स्वीकार किया था. प्रहलाद के बाद अंधक असुरराज अंधकासुर बना.
उसने अपने सभी विरोधियों को समाप्त किया और असुरों को संगठित कर तीनों लोगों को जीता. एक बार अंधक की किसी देवकन्या से विवाह की इच्छा हुई.
उसने अपने मंत्रियों को संसार की सबसे सुंदर कन्या का पता लगाने के लिए भेज दिया. उसके मंत्रियों ने खोजबीन शुरू की.
एक दिन उनकी नजर कैलाश पर विचरण करती माता पार्वती पर पड़ी. उन्होंने देवी के रूप का अंधक के सामने वर्णन किया तो अंधक उनपर मोहित हो गया.
उसने महादेव के पास दूत भेजे और देवी पार्वती को अंधकासुर को सौंप देने को कहा. शिवजी समझ गए कि अब अंधक का अंत आ गया है. इसलिए उन्होंने दूतों को समझाकर लौटा दिया.
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