lord krishna
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एक आदमी को जीवन से बड़ी ख्वाहिशें थीं. उसने उन्हें पूरी करने की कोशिश भी की लेकिन सफल नहीं रहा. किसी सत्संगी के संपर्क में आकर उसे वैराग्य हुआ और संत हो गया. संत होने से उसे किसी चीज की लालसा ही न रही.

संत भगवान की भक्ति में लगे रहते. योग, साधना और यज्ञ-हवन करते. इससे उसे मानसिक सुख मिलता और उसमें दैवीय गुण भी आने लगे. एक बार वह ईश्वर की लंबी साधना में बैठे.

इससे देवता प्रसन्न होकर उनके पास आए और वरदान मांगने को कहा. संत ने कहा- जब मेरे मन में इच्छाएं थीं तब तो कुछ मिला ही नहीं. अब कुछ नहीं चाहिए तो आप सब कुछ देने को तैयार है. आप प्रसन्न हैं यही काफी है. मुझे कुछ नहीं चाहिए.

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