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बहूदक नामक का एक तीर्थ था. यहां नन्दभद्र वैश्य रहते थे. धर्माचारी, सदाचारी पुरूष. उनकी साध्वी पत्नी का नाम कनका था. नंदभद्र चंद्रमौलि भगवान् शंकर के बड़े भक्त थे.
बहुदक में कपिलेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध शिवलिंग था. नंदभद्र तीनों समय कपिलेश्वर की पूजा किया करते थे. नंदभद्र कम से कम लाभ लेकर माल बेचा करते थे और ग्राहकों के साथ बराबरी और ईमानदारी का व्यवहार रखते.
गलत माल और बुरा सामान नहीं बेचते और जो कुछ मिल जाता उसी में संतुष्ट रहते थे. नंदभद्र का जीवन संन्यासियों जैसा था, सब नंदभद्र का सदाचारी, सम्पन्न, सुखमय जीवन की प्रशंसा करते.
नंदभद्र के पड़ोस में रहने वाला सत्यव्रत जो बड़ा ही नास्तिक एवं दुराचारी था, उनसे जलता था. सत्यव्रत चाहता था कि किसी प्रकार नंदभद्र का कोई दोष दिख जाए तो उसे धर्म के मार्ग से गिरा दूं.
नंदभद्र पर झूठे आरोप लगाना और सदा उनके दोष ही ढ़ूंढते रहना उसका स्वभाव बन गया था. दुर्भाग्यवश अचानक नंदभद्र का इकलौता पुत्र गम्भीर रूप से बीमार हो गया. नंदभद्र ने दुर्भाग्य मान शोक नहीं किया.
पुत्र के बाद उनकी पत्नी कनका भी गंभीर रूप से बीमार हो गयी. नंदभद्र पर विपतियां आयी देखकर उनके पड़ोसी सत्यव्रत को बड़ी खुशी हुई. उसने सोचा कि शायद नंदभद्र को धर्म से भटकाने का यही अवसर है.
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