राक्षसी दारूका मेरी बड़ी भक्त है. यह मेरी कृपा से शक्तिसंपन्न है इसलिए यह राक्षसों के राज्य का शासन करेगी. ये राक्षसों की पत्नियाँ अपने राक्षसपुत्रों को पैदा करेंगी जो मिल-जुलकर इस वन में निवास करें-ऐसा मेरा विचार है.

माता पार्वती का आग्रह सुनकर भगवान शिव ने कहा– ‘प्रिय! यदि ऐसा चाहती हो तो मुझे स्वीकार है. फिर मैं भी अपने भक्तों की सुरक्षा के लिए प्रसन्नतापूर्वक स्वयं इस वन में निवास करूंगा.

जो मनुष्य वर्णाश्रम-धर्म का पालन करते हुए श्रद्धा-भक्तिपूर्वक मेरा दर्शन करेगा, वह चक्रवर्ती राजा बनेगा. कलियुग के अन्त में तथा सतयुग के प्रारम्भ में महासेन का पुत्र वीरसेन राजाओं में श्रेष्ठ होगा.

वह मेरा परम भक्त तथा बड़ा पराक्रमी होगा. इस वन में आकर वह मेरा दर्शन करेगा उसके बाद वह चक्रवर्ती सम्राट हो जाएगा. तब तक हम यहीं निवास करें. इस प्रकार शिव-दंपत्ति आपस में हास्य-विलास करते वहीं स्थित हो गए.

इस प्रकार गुजरात के द्वारका के पास स्थित इस ज्योतिर्लिंग में महादेव नागेश्वर नाम से पूजित हैं. पार्वती देवी भी नागेश्वरी के नाम से विख्यात हुईं. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग तीनों लोगों की कामनाओं को पूर्ण करने वाला है.

जो कोई इस नागेश्वर महादेव के आविर्भाव की कथा को श्रद्धा-प्रेमपूर्वक सुनता है, उसके समस्त पातक नष्ट हो जाते हैं और वह अपने सम्पूर्ण अभीष्ट फलों को प्राप्त कर लेता है.

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संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्

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