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नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के सम्बन्ध में श्री शिव महापुराण की कथा इस प्रकार है– दारूका नाम एक राक्षसी ने माता पार्वती को तप से प्रसन्न कर लिया. माता की कृपा से उसे कई शक्तियां प्राप्त हुई थीं.

दारूका जहां माता की भक्त थी वहीं उसका पति दारूक बलशाली, क्रूर और शिवद्रोही राक्षस था. दारूक यज्ञ आदि शुभ कार्यों में विघ्न डालता. सन्त-महात्माओं का संहार करता.

समुद्र के किनारे सभी प्रकार की सम्पदाओं से भरपूर सोलह योजन विस्तार पर उसका एक वन था, जिसमें वह निवास करता था. माता ने दारूका को उस वन स्वामिनी बनाकर उसकी रक्षा का दायित्व दिया था. इसके कारण वन उसके पास रहता था.

दारूका इसका दुरूपयोग करती थी. वह जहां भी जाती थी, वृक्षों तथा विविध उपकरणों से सुसज्जित वह वनभूमि अपने विलास के लिए साथ-साथ ले जाती थी. उससे पीड़ित लोगों ने महर्षि और्व के पास जाकर अपना कष्ट सुनाया.

शरणागतों की रक्षा का धर्म पालन करते हुए महर्षि और्व ने राक्षसों को शाप दे दिया जो राक्षस इस पृथ्वी पर प्राणियों की हिंसा और यज्ञों का विनाश करेगा, उसका अंत हो जाएगा.

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