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मंथर ने कहा मुझे आपसे बहुत डर लगता है. एक बार आपने इतने यज्ञ कराये थे कि धरती गरम हो गयी और मेरी पीठ जल गयी थी. पर मुझे आपका वह उपकार भी याद है जो आपने निरवत क्षेत्र में कच्चा सरोवर बनाकर किया था.
राजा इंड्रद्युन को उस क्षेत्र में किसी तरह का सरोवर बनवाने की याद नहीं थी. असल में राजा ने एक बार इतनी गौएं दान में दीं कि उनके खुरों के उठापटक से एक बहुत बड़ा गड्ढा बन गया और दान के बाद हुई वर्षा ने उसे लबालब भर दिया.
कछुए ने कहा- आपके इस सत्कार्य का लाभ तमाम पशु, पक्षियों समेत, मछलियों, सर्पों, बगुलों, कछुओं समेत सैकडों दूसरे जीव जंतुओं ने उठाया. कछुए की निशानदेही पर राजा इंद्रद्युम्न के सत्कार्य और यश का सबूत मिल गया आउर वह स्थपित भी हो गए.
पर इतने से यश के साथ स्वर्ग जाकर इंद्रद्युम्न कब तक वहां रह पाते. इसलिये उन्होंने सीधे मोक्ष पाने का मार्ग तलाशने की सोची. मंथर ने कहा- सबलोग बहुत काल से धरती पर तप में रत लोमश ऋषि के पास चलें वही इसका रास्ता बतायेंगे.
मंथर सबको लेकर रास्ता बताते हुए लोमश ऋषि के पास पहुंचा. लोमश ऋषि कभी किसी कुटिया में न रहते बल्कि हमेशा अपनी मुट्ठी में दबाकर रखे कुछ तिनके अपने ऊपर डाल लेते.
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